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________________ ८४ मोक्षमाळा- पुस्तक बीजं. नीति धर्म कहे छे, केटलाक ज्ञाननेज धर्म कहे छे, केटलाक अज्ञाननेज धर्ममत कहे छे, केटलाक भक्तिने कहे छे, केटलाक क्रियाने कहे छे, केटलाक विनयने कहे छे अने केटलाक शरीरने साचaj एनेज धर्ममत कहे छे ए धर्ममत स्थापको एम बोध कर्यो जणाय छे के अमे जे कहीए छी ते सर्वज्ञवाणीरुप छे; के सत्य छे, बाकीना सघळा मतो असत्य अने कुतर्कवादी छे; तथा परस्पर ते मत वादीओए योग्य के अयोग्य खंडन कर्यु छे. वेदांतना उपदेशक एज बोधे छे, सांख्यनो पण एज बोध छे, बौधनो पण एज वोध छे, न्यायमतवाळानो पण एज बोध छे, वैशेषिकनो एज बोध छे, शक्ति पंथीनो एज बोध छे; वैष्णवादिकनो एज बोध छे. इस्लामीनो एज बोध छे; अने एज रीते क्राइस्टनो एम बोध छे के आ अमारुं कथन तमने सर्व सिद्धि आपशे. त्यारे आपणे हवे शुं विचार करवो ? वादी प्रतिवादी बन्ने साचा होता नथी, तेम बन्ने खोटा होता नथी. बहु तो वादी कंक वधारे साचो, अने प्रतिवादी कंइक ओछो खोटो होय. अथवा प्रतिवादी कंईक वधारे साचो, अने वादी कंईक ओछो खोटा होय. केवळ बन्नेनी वात खोटी होवी न जोइए. आम विचार करतां तो एक धर्ममन साचो ठरे, अने बाकीना खोटा ठरे. जिज्ञासु - ए एक आश्चर्यकारक वात छे. सर्वने असत्य के सर्वने सत्य केम कही शकाय ? जो सर्वने असत्य एम कहीए तो आपणे नास्तिक ठरीए, अने धर्मनी सच्चाइ जाय. आ तो निश्चय छे के धर्मनी सच्चाइ छे तेम जगत्पर तेनी अवश्य छे. एक धर्ममत सत्य अने बाकीना सर्व असत्य एम कहीए तो ते बात सिद्ध करी बतावी जोइए. सर्व सत्य कहीए तो तो ए रेतीनी जेत्री वात भींत
SR No.006234
Book TitleBalavbodh Mokshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Ravjibhai Mehta
PublisherMansukhlal Ravjibhai Mehta
Publication Year1915
Total Pages188
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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