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________________ ज्ञानीओए वैराग्य शा माटे बोध्यो ? ७५ आपे छे तेमज वैराग्य जे ए कडवा विपाकनुं औषध छे, तेने कडवो गण्यो. आपण अविवेक छे. ज्ञान दर्शनादि गुणो अज्ञानदर्शने घेरी लइ जे मिश्रता करी नांखी छे ते ओळखी भावअमृतमां आवघुं एनुं नाम विवेक छे. कहो त्यारे हवे विवेक ए केवी वस्तु ठरी ! लघु शिष्योः - अहो ! विवेक एज धर्मनुं मुळ अने धर्म रक्षक कहेवाय छे ते सत्य छे. आत्म स्वरुपने विवेक विना ओळखी शकाय नहीं ए पण सत्य छे. ज्ञान, शील, धर्म तत्व अने तप ए सघळां विवेक विना उदय पामे नहीं ए आपनुं कहेतुं यथार्थ छे. जे विवेकी नथी ते अज्ञानी अने मंद छे. तेज पुरुष मतभेद अने मिथ्यां दर्शनमां लपटाइ रहे छे. आपनी विवेक संबंधीनी शिक्षा अमे निरंतर मनन करीशुं. शिक्षापाठ ५२ ज्ञानीओए वैराग्य शा माटे बोध्यो ? संसारनां स्वरुप संबंधी आगळ कंटलंक कहेवामां आव्युं छे ते तमने लक्षमां हशे . ज्ञानीओए ने अनंत खेदमय, अनंत दुःखमय, अव्यवस्थित, चळवळ अने अनित्य कह्यो छे. आ विशेषणो लगाडवा पहेलां एमणे संसारसंबंधी संपूर्ण विचार करेलो जणाय छे. अनंत भवनुं पर्यटन, अनंतकाळनुं अज्ञान, अनंतजीवननो व्याघात, अनंत मरण, अनंतशोक ए बंड करीने संसारचक्रमां आत्मा भम्या करे छे. संसारनी देखाती इंद्रवारणा जेवी सुंदर मोहिनीए आत्माने तटस्थ लीन करी नांख्यो छे. एना जेवुं सुख आत्माने क्यांय भासतुं नथी. मोहिनीथी सत्य सुख अने एनुं स्वरुप जोवानी एणे आकांक्षा पण
SR No.006234
Book TitleBalavbodh Mokshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Ravjibhai Mehta
PublisherMansukhlal Ravjibhai Mehta
Publication Year1915
Total Pages188
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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