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मोक्षमाळा - पुस्तक बीजं.
शिक्षापाठ ५१ विवेक एटले शुं ?
लघु शिष्योः - भगवन् ! आप अपने स्थळे स्थळे कहेता आवो छो के विवेक ए महान् श्रेयस्कर छे, विवेक ए अंधारामां पडेला 'आत्माने ओळखवानो दीवां छे, विवेक वडे करीने धर्म टके छे ? विवेक नथी त्यां धर्म नथी तो विवेक एटले शुं ? ते अमने कहो. गुरु: - आयुष्यमन्नो ! सत्यासत्यने तेने स्वरुपे करीने समजवाँ तेनुं नाम विवेक.
लघु शिष्योः - सत्यने सत्य अने असत्यने असत्य कहेवानुं तो बधाए समजे छे. त्यारे महाराज । एओ धर्मनुं मूळ पाम्या कहेवाय ?
गुरुः- तमे जे वात कहो छो तेनुं एक दृष्टांत आपो जोइए ? लघु शिष्योः - अमे पोते कडवाने कडवुंज कहीए छीए, मधुरांने मधुरु कहीए छीए झरने झेर ने अमृतने अमृत कहीए छीए.
गुरुः- आयुष्यमन्नो ! ए बधां द्रव्य पदार्थ छे; परंतु आत्माने कयी कडवाश, कयी मधुराश, कयुं झेर अने कयुं अमृत छे. भावपदार्थोनी एथी कंइ परीक्षा थइ शके ?
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लघु शिष्यः - भगवन् ! ए संबंधी तो अमारुं लक्ष पण नथी. गुरुः-त्यारे एज समजवानुं छे के ज्ञान - दर्शनरूप आत्माना सत्य भाव पदार्थने अज्ञान अने अदर्शनरूप असत् वस्तुए घेरी लीघा छे, एमां एटली बधी मिश्रता थइ गइ छे के परीक्षा करबी अति अति दुर्लभ छे. संसारनां सुखो अनंतिवार आत्माए भोगव्यां छतां, तेमांथी हजु पण मोह टळ्यो नहीं, अने तेने अमृत जेवो गयो ए अविवेक छे. कारण संसार कडवो छे, कडवा विपाकने