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________________ प्रमाद. बे अर्थ थाय छे. एक तो हे गौतम ! समय एटले अवसर पामीने प्रमाद न करवो अने बीजो ए के मेषानुमेषमा चाल्या जता असं. ख्यातमा भागनो जे समय कहेवाय छे तेटलो वखत पण प्रमाद न करवो. कारण देह क्षणभंगुर छे काळशीकारी माथे धनुष्यवाण चढावीने उभो छे. लीधो के लेशे एम जंजाळ थइ रही छे, त्यां प्रमादयी धर्म कर्त्तव्य करवू रही जशे. अति विचिक्षण पुरुषो संसारनी सर्वोपाधि त्यागीने अहो रात्र धर्ममां सावधान थाय छे, पळनो पण प्रमाद करता नथी. विचक्षण पुरुषो अहोरात्रना थोडा भागने पण निरंतर धर्मकर्तव्यमां गाळे छे, अने अवसरे अवसरे धर्मकर्तव्य करता रहे छे. पण मूंढ पुरुपो निद्रा, आहार, मोजशोख अने विकथा तेमज रंगरागमां आयुष्य व्यतित करी नाखे छे. एनुं परिणाम तेओ अधोगति रूप पामे छे. जेम बने तेम यत्न अने उपयोगथी धर्मने साध्य करवो योग्य छे. साठ घडीना अहोरात्रमा वीशघडी तो निद्रामां गाळीए छीए. बाकीनी चाळीश घडी उपाधि, टेलटप्पा अने रझळवामां गाळीए छीए. ए करतां ए साठ घडीना वखतमाथी बे चार घडी विशुद्ध धर्मकर्त्तव्यने माटे उपयोगमां लइए तो बनी शके एवं छे एर्नु परिणाम पण केवू सुंदर थाय ! . पळ ए अमूल्य चीज छे, चक्रवर्ति पण एक पळ पामवा आखी रिद्धि आपे तोपण ते पामनार नथी. एक पळ व्यर्थ खोवाथी एक भव हारी जवा जेतुं छे. एम तत्वनी द्रष्टिए सिद्ध छे ! ...
SR No.006234
Book TitleBalavbodh Mokshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Ravjibhai Mehta
PublisherMansukhlal Ravjibhai Mehta
Publication Year1915
Total Pages188
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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