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तृष्णानी विचित्रता.
शिक्षापाठ ४९ तृष्णानी विचित्रता.
__ मनहर छंद. . (एक गरीबनी वधी गयली तृष्णा ) हती दीनताइ त्यारे ताकी पटेलाइ अने, मळी पटेलाइ त्यारे ताकी छे शेठाइने सांपडी शेठाइ त्यारे ताकी मंत्रिताइ अने, आवी मंत्रिताइ त्यारे ताकी नृपताइने मळी नृपताइ त्यारे ताकी देवताइ अने, दीठी देवताइ त्यारे ताकी शंकराइने अहो राज्यचंद्रमानो मानो शंकराइ मळी (!) वधे तृशनाइ तोय जाय न मराइने.
(२) करोचली पडी डाढी डाचांतणो दाट वळ्यो, काळी केशपटी विषे, श्वेतता छवाइ गइ सूंघवं सांभळवं ने देखq ते मांडी वाळ्यु, तेम दांत आवली ते, खरी के खवाइ गइ वळी केड वांकी हाड गयां अंगरंग गयो, उठवानी आय जतां लाकडी लेवाइ गइ अरे ! राज्यचंद्र एम, युवानी हराइ पण, मनथी न तोय रांड, ममता मराइ गइ.
. (३) करोडोना करजना, शीरपर डंका वागे, रोमयी रुंधाइ गयुं, शरीर सूकाइने;