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________________ प्रतिक्रमण का आदेश हो गया, दीक्षा का आदेश हो गया, पर उस समय तक वह द्रव्य साधु है, भाव साधु नहीं है। भाव साधु तो दीक्षा ग्रहण करने के बाद होगा । उससे पहले वह द्रव्य साधु होगा। इस तरह पूजनीय के साथ द्रव्य और भाव को देखा जा सकता है। प्रश्न होगा- पूजक के साथ द्रव्य और भाव कैसे होता है ? एक आदमी भगवान विमलनाथ की पूजा करता है । विमलनाथ तो सामने साक्षात है नहीं, सामने उनकी प्रतिमा है। उस प्रतिमा कीं धूप-दीप आदि से जो पूजा की जाती है, वह द्रव्यपूजा है । धूप-दीप, फल-फूल आदि के बिना भावना से कोई पूजक तन्मय होकर विमलनाथ का स्मरण करता है, उनकी भक्ति करता है, वह पूजक भाव पूजा कर रहा है । इस प्रकार द्रव्य और भाव पूजनीय और पूजक दोनों के साथ जुड़ जाते हैं । प्रतिमा अपने आप में चेतना शून्य जड़ पदार्थ है । यह किस आधार पर पूजनीय हो सकती है ? चैतन्य तो पूजनीय हो सकता है, पर प्रतिमा किस आधार पर पूजनीय हो सकती है, यह एक प्रश्न है ? मेरी दृष्टि में द्रव्यपूजा अपने आप में एक विवादास्पद विषय है। भावपूजा का जहाँ तक प्रश्न है, मेरा अनुमान है कि मूर्तिपूजा को मानने वाले लोग भी भावपूजा को अस्वीकार नहीं करते और अमूर्तिपूजक भी भावपूजा को अस्वीकार नहीं करते है। इस प्रकार भावपूजा दोनों के द्वारा सम्मत है, लेकिन द्रव्यपूजा में विवाद है । एक परम्परा, एक विचारधारा द्रव्यपूजा को स्वीकार करती है तो दूसरी विचारधारा द्रव्यपूजा को महत्व नहीं देती, उसे अस्वीकार करती है । मेरे विचार है कि ऐसे विवादास्पद विषयों पर कोई चर्चा होनी चाहिए। मूर्तिपूजा की मान्यता वाले कोई अधिकृत विद्वान आचार्य तथा अमूर्तिपूजा के सिद्धान्त को मान्यता देने वाले अधिकृत विद्वान आचार्य एक साथ बैठे और चर्चा करें। लेकिन वह चर्चा 3
SR No.006232
Book TitleDravya Puja Evam Bhav Puja Ka Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2016
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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