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विश्लेषित किया जा सकता है।
पहले हम पूजनीय को लें कि द्रव्य और भाव पूजनीय कैसे ? भगवान महावीर हमारे लिए पूजनीय है। जैन शासन में कौन ऐसा होगा जो भगवान महावीर को पूजनीय न मानता हो ? हम भगवान महावीर को क्या, किसी भी तीर्थंकर को लें, भगवान विमलनाथ को लें, किसी को भी ले लें, वे हमारे लिए पूजनीय हैं सभी तीर्थंकर हमारे लिए पूजनीय हैं । अब पूजनीय द्रव्य भी हो सकता है और भाव भी हो सकता है। प्रज्ञापुरुष जयाचार्य ने चौबीसी में सुन्दर कहा है
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नाम स्थापना द्रव्यविमल थी, कारज न सरे कोय |
भाव विमल थी कारज सुधरै, भाव जप्यां शिव होय || भगवान विमलनाथ पूजनीय है, पर द्रव्य विमलनाथ नहीं है जब तक उन्होंने दीक्षा नहीं ली थी, गृहस्थ आश्रम में थे, तब तक विमलनाथ पूजनीय नहीं थे । गृहस्थ अवस्था में जो विमलनाथ थे, टं द्रव्य विमलनाथ तीर्थंकर थे, भाव विमलनाथ नहीं थे। जब तीर्थंकर बन गए तो भाव विमलनाथ हो गए।
मैं भूल न करूं तो परमपूज्य गुरुदेव तुलसी के श्रीमुख से मैंन प्राकृत का एक श्लोक सुना था -
नामजिणा जिणनामा ठवणजिणा हुति पडिमाओ । दव्वजिणा जिणजीवा, भावजिणा समवसरणत्था ।।
वह
किसी का नाम है विमल, पर नाम विमल होने से कोई विमलनाथ भगवान नहीं हो जाएगा। विमलनाथ की जो प्रतिमा है, प्रतिमा भाव विमलनाथ नहीं है। गृहस्थावस्था में थे तो वह भाव विमलनाथ नहीं, द्रव्य विमलनाथ थे । केवलज्ञान हो गया, समवसरण में विराजमान हो गए तब भाव विमलनाथ हो गए। पूजनीय जब तक द्रव्य अवस्था में है, तब तक वह वस्तुतः पूजनीय नहीं होता । मूल अवस्था में आ जाए, तब भाव पूजनीय हो जाता है। किसी व्यक्ति को
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