________________
जी तीर्थ के लिए साधन ( रेल ) को त्यागना पड़ेगा तभी मंजिल पर पहुँच पाऊंगा लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि मंजिल पर पहुँचने के लिए जब साधक को छोड़ना ही है तो साधन का उपयोग क्यों करूं ? अगर ऐसा सोच लिया तो मैं दिल्ली में ही रह जाऊंगा । कभी अपनी मंजिल पर नहीं पहुँच पाऊंगा । उसी तरह आत्मा का परमात्मा से साक्षात्कार के लिए प्रतीकोपासना साधन है। साक्षात्कार के समय प्रतीक की आवश्यकता नहीं लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि जब अंत में प्रतीकोपासना को त्यागना ही है तो अपनायें किसलिए ? अपनाते है मंजिल तक पहुँचने के लिए व त्यागते है, मंजिल मिल जाने के समय ।
परम् पूज्य पंन्यास प्रवर जैन मुनि श्री भद्रंकर विजयजी गणिवर्य के शब्दों में- 'उपास्य की अनुपस्थिति में उसकी उपासना उपासक के लिए किसी मकान के प्लान के समान है। मकान की अनिर्मित अवस्था में कुशल कारीगर उसके प्लान को ही बार - बार देखकर भवन निर्माण के कार्य को पूरा कर सकता है। जब तक मकान पूरा नहीं बन जाता कारीगर को वह प्लान हर घड़ी अपनी नजरों के सामने रखना पड़ता है, ठीक उसी भांति अपनी आत्मा को उपास्य सम बनाने हेतु उपासक को, जब तक उपास्य जैसी निर्मलता प्राप्त नहीं हो जाती तब तक, उपास्य की स्थापना को प्रतिपल अपने सम्मुख रखना ही पड़ता है, यह सर्वथा स्वाभाविक है।
आत्मा मानव शरीर ( साधन) को धारण करके ही मोक्ष (साध्य) को प्राप्त कर सकती है, परन्तु मोक्ष प्राप्त करने के लिए मानव शरीर का त्याग करना पड़ता है । आत्मा अगर यह सोच ले कि मानव शरीर छोड़ना ही है तो धारण ही क्यों करें ? तो उसे कभी साध्य की उपलब्धि नहीं होगी, क्योंकि सशरीर मोक्ष नहीं मिलता। इससे सिद्ध होता है कि साध्य की प्राप्ति के लिए साधन महत्वपूर्ण व आवश्यक है। इस प्रकार परम तत्त्व की प्राप्ति के लिए मूर्ति / प्रतीक का आलंबन अति आवश्यक है।
24