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आगम
(४२)
“दशवैकालिक - मूलसूत्र-३ (नियुक्ति:+|भाष्य +चूर्णि:) अध्ययनं [२], उद्देशक , मूलं H / गाथा: [६-१६/६-१६], नियुक्ति: [१५२-१७६/१५२-१७७], भाज्यं [४...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र - [४२], मूलसूत्र - [०३] "दशवैकालिक" नियुक्ति: एवं जिनदासगणि-रचिता चूर्णि:
प्रत सूत्रांक
गाथा ||६-१६||
श्रीदशIN विलक्खीकओ, तो थेरस्स ताए अद्धितीए निदा गड्ढा, रणो य कण्ण गतं, रण्णा सहावेऊण अंतेउरपालओ कओ, अभिसे
भसाहनपुरपंडिवैकालिक च हत्थिरयणं वासघरस्स हेट्ठा बद्धं चिट्ठइ, हो य एगा देवी इथिमिथे आसत्ता, णवरं हतं धेरो पेच्छद, चितियं चऽणेण-एवं
| तोदाहरणं चीदा रक्खेज्जमाणीओ एताओ एवं विहरंनि किनु पायताओ सदा सच्छंदाउत्ति पसुत्तो, पभाए सबलोगो उडिओ, सोण उड्डेइ, रण्णो २ अध्ययने है कहिय, रण्णा भणिय सुवउ, चिरस्सविय उद्दविओ, पुच्छिो य, कहिय-सव्वं भणेति, भणति- जहा एगा देवी, ण याणामि
| कतराचि, तओ राइणा भंडहत्थी कारिओ, भणियाओ- एतस्स अच्चणिय काऊण उलंडेह, सवाहिं उलेंडिओ, एगा णेच्छइ,15 ॥९ ॥
मणइ य- अहं बीइमि, तओ रणा उप्पलेणाया, पडिया, रण्णा जाणिया एसा कारिचि, मणिय चणण- मलंगतआरुहंतीए भंडमयस्स गयस्स बीहेहि (हन्तीए)। तत्थ ण मुच्छिय संकलाहया, एत्थऽसि मुच्छिय उप्पलाइया।।१।। तओ सरीरं जोइय, जाव संकलप्पहारो दिडो, तओ रुद्रुण रण्णा देवी मेंठो य हत्थी य तिण्णिवि छिण्णकडगे चढावियाणि, भणिओ य मिठो-एत्थ बाहेहि, हत्थीस्स दोहि य पासेहिं वेलुअग्गहाओ ठिया, जाव एगो पाओ आगासे ठविओ, जणो भणइ- किं एस तिरिओ जाणइ ?, एताणि मारतव्याणि, तहवि राया रोसन मुबह, तओं तिणि पादा आगासे कया, एगेण ठिओ, लोगेण य फओ अकंदा, कि तं हस्थिरतणं विणासिज्जा, रण्णा मेंठो मणिओ- तरसि नियत्तेउं', भणइ-जइ दुयगाण अभयं देसि, दिण्णो, नियत्तिओ हत्थी अंकुसेण, एवं नहा से णागो तेण मिठेण तमावई पाविओवि एरिसे ठाणे अंकुसण आहओ जेण पादं भमाडेऊण चउसुवि ॥११॥ पादेसुवि धरणितले ठिओत्ति, तहा रहनेमीवि रायमतीए संसारभउब्बेगकरेहिं वयणेहि तहा अणुसासिओ जेण संजर्म पुणरवि संपडिवण्णोति ॥
दीप अनुक्रम [६-१६]
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