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आगम (४२)
“दशवैकालिक - मूलसूत्र-३ (नियुक्ति:+|भाष्य +चूर्णि:) अध्ययनं [७], उद्देशक [-], मूलं [१५...] / गाथा: [२७८-३३४/२९४-३५०], नियुक्ति: [२७१-२९३/२६९-२९२], भाष्यं [६२...]
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र - [४२], मूलसूत्र - [०३] “दशवैकालिक नियुक्ति: एवं जिनदासगणि-रचिता चूर्णि:
प्रत
सूत्रांक [१५...]
गाथा ||२७८
३३४||
श्रीदश- आयरिओ आह- तस्स कोहाउलचित्तचणणं घुमक्खरभिव त अप्पमाणमेव भवति, जहा पुणखर सच्चमवि पंडियाणं चित्तगाहगं वैकालिक न भवति, कोवाकुलचित्तो जे संतमवि भासति तं मोसमेव भवति, तत्व कोहेण लाव अनेन प्रकारेण मृषामाभिधास्यते, जहा कोई
चूणौँ साहुणा धीमाराई पुच्छिओ-असुगं नगरं कतरो पंधो बच्चद, तओ सो अपवरद्धबद्धो अन्नमेव पंथं बवदिसइ, ण याणामि वादा "वाक्य- भणति, पिया कुद्धो पुतं भणइ-न तुम मम पुत्तोत्ति, एवमादि, माणनिस्सिया जहा गामनगरसमवाएसु कस्स कत्तिओ अत्थोति शुद्धि अ018 पुच्छिए अप्पधणोऽवि भणइ-जहाऽहं कोणी(डी)धणोति एवमादि,मायाणिस्सिता जहा मायाकारो चाबुमोहर्ण काउं भणइ-आगासा
लोगओ पविट्ठो, एवमादि, लोभगिस्सिता जहा कूडमाणवचहारिणो वाणियगा, कोई लोभेणं मोस भासेज्जा एवमादि, पेज्ज॥२३७||
पिस्सिया जहा हाणुरागेण भणह-दासोऽहं तव एवमादि, दोसणिस्सिता जहा भगवओ बद्धमाणसामिणो संता गुणा केही पावकम्मा छादयंति,जहा न एसो सवण्णू ,ण एवं सक्कमादी सुरा पज्जुवासंति, किन्तु एसो इंदियालियप्पयोगो विजातिसओ) वा एवमादि, हासणिस्सिया जहा कस्सइ किंचि तारिस गोवेऊण पुच्छिज्जमाणो भणइ-न याणामिति, एवमादि, भयाणस्सिया जहा चोरो तालिज्जमाणोऽवि मरणभयाभिभूओ भषइ- गाई चोरोत्ति एवमादि, अक्खाइयानिस्सिया अहा मारहरामायणादि, २३७॥ | उवधायनिस्सिया जहा अचारं चारेमिति एवमादि। मोसागता।इदाणि सच्चामोसा भण्णइ,किंचि तीए सच्चं किंचि मोसंति, र
सा इमा दसविधा, तं०- उप्पन्नविगयमीसगः ॥ २७७ ।। गाथा, उप्पण्णमीसिया विगतमीसिया उपबविगतमीसिया जीव४ मीसिया अजीममीसिया जीवाजीवमीसिया अणंतमीसिया परिसमीसिया अद्धामीसिया अद्धद्धामीसिया इति, तत्थ उप्पनमीसिया।
जहा कोइ भणेज्ज-एयंमि नगरे दस दारगा बाता, तत्थ कदाइ ऊणा अधिमा वा होज्जा एवमादि उप्पण्णमीसिया, विगयमी
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दीप अनुक्रम [२९४३५०]
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