________________
आगम
(०२)
“सूत्रकृत” - अंगसूत्र-२ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [२], अध्ययन [७], उद्देशक [-1, नियुक्ति : [२०१-२०५], मूलं [६९-८२] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता......आगमसूत्र-०२], अंग सूत्र-[०२] "सूत्रकृत" जिनदासगणि विहिता चूर्णि:
प्रत
उदकवोधः
सूत्रांक
श्रीयत्रक-12 एवं आणसि किं ण चंदसि ?, इत्युक्तो गौतमेन ततः स उदगः पेढालपुचो भगवं गौतम एवं वदासी-एतेसिणं भंते ! पदाणं| ताजाणकतराई जाई पुच्छणाए चुत्ताणि मदीयपक्षस तानीत्यर्थः, अण्णाणता एवम णो सद्दहित, एतेसिणं झ्याणि जाणणताए एतमटुं ५ ॥४६६॥
सदहामि जद्द सूत्रेति यव्वं सब्यमिति ।।
||६९
८२||
दीप
अनुक्रम
4555555555555555555555555555555555555 नमः सर्वज्ञदेवाय विगतमोहाय, समाप्तं चेदं चूर्णितः सूत्रकृताभिधानं द्वितीयमङ्गामिति ।। 54:5555454545454545454555555555555555555555
%
[७९३८०६]
11४६६॥
सूत्रकृताङ्गसूत्रस्य जिनदासगणि विहिता चूर्णि परिसमाप्ता:
मूल संशोधकः सम्पादकश्च पूज्य आनंदसागरसूरीश्वरजी महाराज साहेब किंचित् वैशिष्ट्य समर्पितेन सह पुन: संकलनकर्ता मुनि दीपरत्नसागरजी [M.Com., M.Ed., Ph.D., श्रुतमहर्षि]
[470]