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का आलेखन किया । और पूज्यपाद श्री भूपेन्द्रसूरीश्वरजी ने उन्हीं कथाओं को संस्कृत में निबद्ध किया है ।
पाठकगण मतांतरों को गौण कर केवल आत्मविकास के शुभ
लक्ष्य से ग्रन्थ का रसास्वादन करें ।
आहोर मुक्ति विहार प्रतिष्ठा प्रसंगे २०७१ - वैशाख शुक्ल - ९
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शुभं भवतु जयानंद