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________________ २९ जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन संसार से मुक्ति, मुक्ति के उपाय और मुक्त जीव का विवेचन किया है । इसके साथ ग्रन्थ समाप्त हो गया है। हिन्दी कृतियाँ ऋषभावतार ऋषभचरित हिन्दी भाषा में लिखा गया महाकाव्य है । इसमें १७ सर्ग तथा ८११ . पद्य हैं । ये पद्य रोला, हरिगीतिका, कुण्डली एवं दोहा छन्दों में निबद्ध हैं । प्रस्तुत महाकाव्य का कथानक आदिपुराण के पूर्वार्ध की कथा पर आश्रित है | इसके प्रथम सात सर्गों में वर्तमान जन्म का वर्णन है । इसमें भगवान् ऋषभदेव के गर्भोत्सव, जन्मोत्सव, दो विवाह, वंशक्रम, पुत्र-पुत्रियों की शिक्षा-दीक्षा, कर्मभूमि आरम्भ होने पर षट्कर्मों का उपदेश, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र तीन वर्गों की सृष्टि, ऋषभदेव को वैराग्य की उत्पत्ति, मुनिदीक्षा अंगीकार कर तपस्या करना, अन्त में तीर्थंकर पद प्राप्तकर प्राणियों को धर्मोपदेश देना एवं निर्वाण प्राप्त करना आदि का विस्तृत निरूपण किया गया है । ऋषभचरित में महाकाव्य के सभी लक्षण उपलब्ध होते हैं । शृंगार, वीर, करुण आदि रसों एवं भक्तिभाव की अभिव्यंजना, उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, व्यतिरेक, विरोधाभान. परिसंख्या और अपहृति आदि अलंकारों के सहज मञ्जुल प्रयोग, प्रकृतिवर्णन, वस्तुवर्णन आदि से यह महाकाव्य अत्यन्त रमणीय बन गया है । भाग्योदय इसका अपरनाम "धन्यकुमारचरित है । इस काव्य में धन्यकुमार का जीवनचरित रोचक और मरस रीति से प्रस्तुत किया गया है । काव्य का प्रणयन तेरह शीर्षकों में हुआ है - कथारम्भ, भाग्यपरीक्षा, नगर श्रेष्ठी पद की प्राप्ति, गृहत्याग, गृहकलह, विवाहप्रक्रम, कुटुम्बसमागम, कोशाम्बी में धन्ना का समन्वेषण, न्यायप्रियता, कौशम्बी से प्रस्थान, प्रायश्चित्त एवं धन्यकुमार का वैराग्य । ८५८ पद्यों वाला यह काव्य हरिगीतिका, गीतिका, अडिल्ल, कुण्डली, दोहा, कुसुमलता, छप्पय, गजल, रेखता आदि छन्दों में निबद्ध है । काव्य का अंगीरस शान्त है तथा शृंगार, वीर, करुण आदि सहायक रस के रूप में अभिव्यंजित हुए हैं। अलंकारों, मुहावरों, लोकोक्तियों एवं सूक्तियों के प्रयोग ने इसे चारुत्व से मण्डित कर दिया है।
SR No.006193
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAradhana Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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