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________________ जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन प्रस्तुत कृति तीन अधिकारों में विभक्त हैं - ज्ञानप्ररूपक अधिकार, ज्ञेयाधिकार, एवं चारित्राधिकार । ज्ञानप्ररूपक अधिकार : इसमें द्रव्य, गुण, पर्याय, अशुभोपयोग, शुभोपयोग, शुद्धोपयोग, मोह, सुख, सद्दर्शन, अदर्शन, कुदर्शन आदि की सरल समीचीन परिभाषायें दी गई हैं। याधिकार : इसमें स्यावाद शैली द्वारा परवादियों के एकान्त मतों की समीक्षा की गई है । गाथा १ से ३४ तक द्रव्य का लक्षण, गुण, पर्याय, उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य का स्वरूप, द्रव्यार्थिक-पर्यायार्थिक नय, सप्तभंग, चेतना और उसके भेदों का विशद विवेचन किया गया है । इसके अनन्तर गाथा ३५ से ५६ तक द्रव्य के भेद जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश, काल तथा अशुद्ध जीव का वर्णन है । तत्पश्चात् शुभोपयोग, अशुभोपयोग का स्पष्टीकरण किया गया है । जीव-पुद्गल का विस्तृत विवेचन, द्रव्यकर्म, भावकर्म जैसे गूढ़ विषयों को सरल शब्दों में स्पष्ट कर यह प्रतिपादित किया गया है कि सब पदार्थ ज्ञेय हैं और जीव इनका ज्ञाता है । आत्मा शाश्वत है और अन्य पदार्थ क्षणभंगुर हैं । सभी परपदार्थों में ममत्व त्यागकर अपनी आत्मा में विशुद्धता प्राप्त करने वाला जीव मिथ्यादर्शन का नाश कर सकता है । सम्यग्दृष्टि होने पर शुद्धात्मा के ध्यान के लिए मुनि अवस्था ग्रहण करना आवश्यक है। चारित्राधिकार : ज्ञान आत्मा का गुण है परन्तु ज्ञान की सार्थकता पवित्र आचरण के द्वारा होती है । आचरण के अभाव में ज्ञान पंगु है, सफलता चारित्र के ही आधीन है । अतः हर एक मनुष्य को चारित्र धारण करना चाहिए । क्योंकि मनुष्य पर्याय में ही चारित्र धारण किया जा सकता है । सम्यग्दर्शन तो अन्य गतियों में भी हो जाता है । इस अधिकार में चारित्र धारण करने की रीति, साधु के कर्तव्य, आहार, विचार, मुनियों के भेद, परिग्रह, पंचपाप, स्त्रीमुक्ति निषेध, चारित्र की महत्ता, अटल समता, सच्चा मुनि, वैयावृत्य, सत्संगति आदि विषयों का वर्णन है। इनकी व्याख्या आचार्य श्री ने आर्ष ग्रन्थों, श्वेताम्बर एवं इतर दर्शनों के प्रामाणिक ग्रन्थों से उद्धरण प्रस्तुत करते हुए सरल सुबोध भाषा में की है । इसके अध्ययन से शंकाओं का समाधान स्वयमेव हो जाता है । उपर्युक्त चारित्र वर्णन के अनन्तर ग्रन्यकार ने उपसंहाररूप में संसारपरिभ्रमण,
SR No.006193
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAradhana Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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