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अष्टम अध्याय:
नवम अध्याय:
XIX रस ध्वनि
१४९-१७८ रस का स्वरूप, रस सामग्री - विभाव, आलम्बन और आश्रय, अनुभाव, व्यभिचारिभाव, स्थायिभाव, विभावनादि व्यापार के कारण, विभावादि संज्ञा, विभावादि के साधारणीकरण से रसोत्पत्ति, रसोत्पत्ति सहदय सामाजिक को ही, रस संख्या । जयोदय में रस ------- शृंगाररस, हास्यरस, रौद्ररस, वीररस, भयानकरस, वीभत्सरस, शान्तरस का स्वरूप, शान्तरस के विभाव, अनुभाव, व्यभिचारिभाव, शान्तरस सता विषयक विवाद, शान्तरस विरोधी तर्कों का खण्डन, शान्तरस स्थायीभावविषयक विवाद, निर्वेद का खण्डन, शम की स्थापना । जयोदय में शान्तरस । रसाभास--शृंगार रसाभास, भयानक रंसाभास। भाव, देव विषयक रति, गुरु विषयक रति, भावोदय, भावसन्धि, भावशबलता। वर्णविन्यासककता
१७९-१९६ वर्णविन्यासवक्रता का · स्वरूप, वर्णविन्यासवक्रता के नियम, वर्णविन्यासवक्रता और अनुप्रास, छेकानुप्रास, वृत्त्यनुप्रास, माधुर्य व्यंजक वर्णविन्यासवक्रता, ओजोव्यंजक वर्णविन्यासवक्रता, श्रुत्यनुप्रास, अन्त्यानुप्रास, यमक, वर्णविन्यासवक्रता के प्रयोजन । जयोदय में वर्णविन्यासककता ---- अनुप्रास, यमक, आध यमक, युग्म यमक, अन्त्य यमक, माधुर्यगुणव्यंजक वर्णविन्यासवक्रता, ओजोगुणव्यंजक वर्णविन्यासवक्रता। चरित्रचित्रण
१९७-२०६ वयोदय के पात्र-जयकुमार, अर्ककीर्ति, अकम्पन, चक्रवर्ती सम्राट् भरत, सुलोचना, बुद्धिदेवी) ऋषभदेव, अनवद्यमति मन्त्री, दुर्मति, दुर्मर्षण । जीवन दर्शन और जीवन पद्धति
२०७-२१६ पुरुषार्थ चतुष्टय, देवपूजन, स्वाध्याय, गुरुजनों का आदर, विनय और सदाचार, दान, निरामिष आहार, न्यायपूर्वक धनार्जन, परमात्मा का ध्यान, सप्तव्यसन त्याग।
दशम अध्याय:
एकादश अध्याय :
बादश अध्याय :
उपसाहार
२१७-२२२
प्रथम परिशिष्ट -
२२३-२२४ महाकवि आचार्य ज्ञानसागर जी की अप्रकाशित संस्कृत रचनायें --- वीरशर्माभ्युदय, संस्कृत भक्तियाँ
द्वितीय परिशिष्ट .
२२५-२२७
जयोदय में राष्ट्रीय चेतना
तृतीय परिशिर .
२२८-२३३
सन्दर्भ ग्रन्थसूची