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________________ जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन यहाँ प्रमुख पात्रों के चरित्र का विश्लेषण किया जा रहा है। जयकुमार १९९ जयकुमार इस महाकाव्य के धीरोदात्त नायक हैं। वे हस्तिनापुर के शासक एवं भरत चक्रवर्ती के सेनापति हैं । सौन्दर्य में कामदेव तथा ज्ञान में बृहस्पति के समान हैं । शौर्य में भी कोई उनकी समान नहीं कर सकता है। काशी नरेश की पुत्री सुलोचना जयकुमार के गुणों से अत्यधिक प्रभावित होती है और स्वयंवर सभा में उपस्थित सभी राजाओं को छोड़कर उनका वरण करती है । * जयकुमार अप्रतिम योद्धा हैं। वीरश्री सदैव उनका ही वरण करती है। जयकुमार के युद्ध कौशल एवं असाधारण व्यक्तित्व की प्रशंसा भरत चक्रवर्ती भी करते हैं । स्वयंवर समारोह के अनन्तर युद्धोन्मुख अर्ककीर्ति को उसका अनवद्यगति मन्त्री युद्ध न करने हेतु समझाता है और जयकुमार के विषय में कहता है - चक्रञ्च कृत्रिमं चक्रे चक्रिणो दिग्जये जयम् । जयं एवायमित्यस्मात् तस्यापि स्नेहभाजनम् ॥ ७ / ४१ आपके पिता भरत चक्रवर्ती की षट्खण्ड दिग्विजय में चक्र तो नाम मात्र का (कृत्रिम) था, वास्तविक चक्र तो जयकुमार ही था, जिसके कारण उन्हें षट्खण्डों पर विजय प्राप्त हुई है । जयकुमार आपके पिता के स्नेह का पात्र है । उक्त कथन जयकुमार के असाधारण व्यक्तित्व का द्योतक है। जब अर्ककीर्ति युद्ध के लिए तत्पर हो जाता है तो जयकुमार भी काशी नरेश अकम्पन को धैर्य बँधाता हैं और अपने प्रतिद्वन्द्वी अर्ककीर्ति से वीरता पूर्वक युद्ध करता है। अर्ककीर्ति को पराजित कर उसे बन्दी बना लेता है। जयकुमार की जिनदेव, जिनशास्त्र और जिनगुरु में दृढ़ श्रद्धा है । वे प्रतिदिन नियम पूर्वक सुबह-शाम देब-शास्त्र-गुरु की पूजा-उपासना करते हैं।' नगर या उपवन में मुनि के आगमन का समाचार मिलते ही उनके दर्शनार्थ जाते हैं, श्रद्धापूर्वक गुणस्तवन करते हैं और उनसे धर्मोपदेश श्रवण करते हैं। इन उपदेशों को अपने जीवन में उतारने का प्रयत्न करते हैं । युद्धोपरान्त वे जिनालय में जाते हैं तथा प्रायश्चित के रूप में जिनस्तवन १. जयोदय, सर्ग - १९ २ . वही, १/८८ - ११२, २/१-१४१
SR No.006193
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAradhana Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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