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मुनि
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- जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन वैराग्य, तपश्चरण तथा मोक्ष-प्राप्ति, सुलोचना का उत्कृष्ट शील, धर्मानुराग, वैराग्य तथा आर्यिका दीक्षा से लेकर आत्मोत्थान की साधना, यह भोग और योग से समन्वित आदर्श मानव चरित जयोदय का प्रमुख प्रतिपाद्य है।
___ जयोदय के विशद अनुशीलन के लिए इसका विश्लेषण भी आवश्यक है, जो यहाँ प्रस्तुत है। जयोदय के पात्रों का परिचय निम्नांकित विभाजन द्वारा एक दृष्टि में हो जाता हैजयोदय के पात्र पुरुष पात्र
स्त्री पात्र ऋषभदेव
सुलोचना
अक्षमाला जयकुमार
बुद्धिदेवी अर्ककीर्ति
कांचनादेवी अकम्पन
व्यन्दरदेवी (सर्पिणी) भरत चक्रवर्ती
गंगादेवी अनन्तवीर्य अनवद्यमति मन्त्री दुर्मति मन्त्री दुर्मर्षण सेवक सुमुख दूत महेन्द्रदत्त कंचुकी चित्रांगद देव रविप्रभ देव ..
व्यंतरदेव (सर्प)
— इन्हें पाँच वर्गों में विभाजित किया जा सकता है: ऋषिवर्ग, राजवर्ग, राजसेवक - वर्ग, देववर्ग तथा व्यन्तरवर्ग । ऋषभदेव एवं मुनि ऋषिवर्ग के पात्र हैं। जयकुमार, अर्ककीर्ति, अकम्पन, भरत चक्रवर्ती, अनन्तवीर्य, सुलोचना तथा अक्षमाला राजवर्ग से सम्बद्ध हैं। अनवद्यमति मन्त्री, दुर्मति मन्त्री, दुर्मर्षण सेवक और महेन्द्रदत्त कंचुकी राजसेवक वर्ग के अन्तर्गत हैं । देव वर्ग के पात्र हैं - चित्रांगद देव, बुद्धिदेवी, रविप्रभदेव व कांचनादेवी । व्यंतरदेव, व्यंतरदेवी एवं गंगादेवी को व्यन्तरवर्ग के अन्तर्गत रखा जा सकता है । जयोक्य के प्रत्येक पात्र का चरित्र समाज के लिए आदर्श प्रस्तुत करता है।