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________________ दशम अध्याय चरित्रचित्रण काव्य और नाट्य का विषय मानव चरित ही हुआ करता है । उसी के माध्यम से कवि रस व्यंजना करता है । आचार्य भरत ने नाट्य के विषय का वर्णन करते हुए कहा - है - नानाभावोपसम्पन्नं नानावस्थान्तरात्मकम् । 119 लोकवृत्तानुकरण नाट्यमेतन्मया कृतम् मैंने नाना भावों से समन्वित तथा विविध अवस्थाओं से युक्त लोकवृत्त का अनुकरण करने वाले नाट्य की रचना की है । आचार्य भरत की इस उक्ति से सम्पूर्ण साहित्य के विषय का निर्देश हो जाता है। लोकवृत्त ही समग्र साहित्य का विषय है। मानव का समस्त मनोवैज्ञानिक पक्ष मानव की प्रवृत्तियाँ, मनोभाव एवं साध्य " लोकवृत्त" शब्द से अभिहित होता है। वामन ने अपने काव्यादर्श में "लोको विद्या प्रकीर्णं च काव्याङ्गानि ” उक्ति के द्वारा लोक अर्थात् "लोकवृत्त" को काव्य का अंग (विषय) प्रतिपादित किया है । २ 1 "लोकचरित का अनुकरण ही नाट्य है । लोक में व्यक्तियों का चरित्र न तो एक समान होता है और न उनकी अवस्थाएँ ही एकाकार होती हैं । हम किसी व्यक्ति को सांसारिक सौख्य की चरम सीमा पर विराजमान पाते हैं, तो किसी को दुःख, के तमोमय गर्त में अपना भाग्य कोसते हुए पाते हैं । सुख तथा दुःख, वृद्धि तथा ह्रास, हर्ष तथा विषाद, प्रसाद तथा औदासीन्य इन गाना प्रकार के भावों की संज्ञा लोक है । इन्हीं भावों से सम्पन्न, नाना अवस्थाओं के चित्रण से युक्त लोकवृत्त ही नाटक है ।" ३ गुरुदेव रवीन्द्रनाथ का कथन है - है जो मनुष्य की समग्र मानवता को प्रकट करने की क्षमता रखे । * 'काव्य में वही वस्तु उपादेय मानी जा सकती " जयोदय का विषय भी मानव चरित है। राजा जयकुमार और राजकुमारी सुलोचना के प्रणय, स्वयंवरण, सुखमय दाम्पत्य जीवन, जयकुमार की वीरता, प्रजाप्रेम, धर्मवत्सलता, १. भरत नाट्यशास्त्र, १ / ११२ २. काव्यादर्श, १३१ - ३. लोकवृत्तं लोकः, लोक: स्थावरजंगमात्मा च । तस्य वर्त्तनं वृत्तमिति । काव्यादर्श, १३२ ४. भारतीय साहित्यशास्त्र, १ / ३७८
SR No.006193
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAradhana Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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