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जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन
१७७ जयोदय में भावोदय के अनेक स्थल हैं । उनमें से कुछ के निदर्शन इस प्रकार हैं -
जब राजा जयकुमार अपने श्वसुर अकम्पन से हस्तिनापुर जाने की आज्ञा लेते हैं तो राजा अकम्पन दुखी हो जाते हैं । वे अपने मुख से शुभाशीर्वाद भी नहीं दे पाते । उनके नेत्रों में आँसू आ जाते हैं । मौनपूर्वक ही अपने जामाता के मस्तक पर अक्षत अर्पित करते . हैं । इससे राजा अकम्पन का शोक भाव अभिव्यक्त हो उठता है -
न वदापि काशिकापतिर्बलनेतुर्गुणिनो महामतिः ।
शिरसि स्फुटमक्षतान् ददौ झुपकुर्वजपनोदकैः पदौ ॥१३/२ जब दुर्मर्षण अपने तीक्ष्ण वचनों से अर्ककीर्ति को उत्तेजित करता है तो उसके नेत्र लाल हो जाते हैं, जिससे उसका क्रोध भाव उदित हो जाता है -
कल्यां समाकलय्योग्रामेनां भरतनन्दनः।
रक्तनेत्रो जवादेव बभूव क्षीवतां गतः॥७/१७ भावसन्धि
जहां दो भाव एक साथ उदित होते हैं वहां भावसन्धि होती है । जयोदय में भावसन्धि के अनेक उदाहरण हैं । यथा --
विवाह के अनन्तर सुलोचना अपने पति जयकुमार के साथ जाती है तो उसके मन में हर्ष और विषाद युगपत् उत्पन्न होते हैं -
भवसम्भवसंत्रवादितो गुरुवर्गाश्रितमोहतस्ततः।
नरराजवशादृशात्मसादपि दोलाचरणं कृतं तदा । १३/२० ___- एक ओर तो स्वामी के प्रेम तथा दूसरी ओर माता-पिता, गुरुजनों से मोह के कारण सुलोचना की दृष्टि ने झूले का अनुकरण किया, अर्थात् वह कभी हर्ष से जयकुमार की ओर देखती थी और कभी शोक से माता-पिता की ओर ।
यहाँ हर्ष और विषाद की सन्धि है । भावशवलता
जहाँ नायकादि में अनेक भाव एक साथ उदित होते हैं, वहाँ भावशीलता होती है अपने जामाता जयकुमार के विजयी होने पर भी महाराजा अकम्पन प्रसन्न नहीं