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________________ १४७ जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन के समाधान हेतु कवि ने कर्मफल एवं धर्मफल विषयक सूक्तियों का प्रयोग किया है - ' स्वयंवर मण्डप में राजकुमारी सुलोचना मालव देश के अधिपति से भी अनुराग नहीं करती । “जब दैव विपरीत हो जाता है तब पुरुषार्थ भी काम नहीं करता।" (किमु दैवे विपरीते पौरुषाणि अपि परुषाणि स्युः) - निभृते गुणैरमुष्मिन् नाबन्धमवाप सापगुणदस्युः । किमु दैवे विपरीते परुषाण्यपि पौरुषाणि स्युः ॥ ६/९७ राजा जयकुमार अपनी पूर्वभव की प्रिया प्रभावती के विषय में विचार कर रहे थे कि अवधिज्ञानरूपी दूत ने आकर उनकी आकांक्षा पूर्ण कर दी । “पृथ्वी पर पुण्य के उदय से अभीष्ट सिद्धि स्वयमेव हो जाती है।" (जगत्यां सुकृतैकसन्ततः अभीष्टसिद्धिः स्वयमेव जायतेः) तदेकसन्देशमुपाहरत् परमुपेत्य बोधोऽवधिनामकश्वरः । अहो जगत्यां सुकुतैकसन्ततेरभीष्टसिद्धिः स्वयमेव जायते ॥२३/३५ राजा जयकुमार और रानी सुलोचना अपने पूर्वजन्म में क्रमशः हिरण्यवर्मा और प्रभावती थे । दोनों ही जिनदीक्षा अंगीकार कर वन में तप कर रहे थे । इसके पूर्व भव के. शत्रु विद्युच्चोर ने जब दोनों को तप करते हुए देखा तो क्रोध से उन्हें जला दिया । वे समताभाव से देह का परित्याग कर स्वर्ग गये । "उत्तम तप से मनुष्य को उत्तम फल प्राप्त होता है।" (जनाः सत्तपसा महो व्रजन्तु) - एतौ तपन्तौ समवाप्य वियुचौरो रुषा प्लोषितवान् परेयुः । भवान्तरारिः स्वरितौ च किन्तु महो जनाः सत्तपसा व्रजन्तु ॥ २३/७० राजा जयकुमार की अनेक रानियाँ थीं फिर भी वह परिजनों तथा पुरजनों के समक्ष रानी सुलोचना के मस्तक पर पट्टरानी का पट्ट बाँधता है । “पाप कर्म का अन्त अर्थात् पुण्य का उदय होने पर पुरुषों के स्त्रियों के प्रति अनुकूल भाव होते हैं।" (दुरितान्तकाले रमिणां रमासु भाा भवन्ति) - हेमाङ्गदादिष्वधुना स्थितेषु बबन्ध पट्ट पटुरेण तस्याः। भाले विशाले दुरितान्तकाले भवन्ति भावा रमिणां रमासु ॥ २१/८२ बुद्धि आदि का महत्त्व प्रतिपादित करने वाली सूक्तियों के द्वारा कार्यविशेष में सफलता प्राप्ति के प्रति आश्वस्त किया गया है । यथा - सम्राट् भरत के पुत्र अर्ककीर्ति स्वयंवर में सम्मिलित होने हेतु अपने मित्रों के साथ
SR No.006193
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAradhana Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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