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________________ १२८ जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन यहाँ “मोदते" क्रिया से प्रसन्न होने पर मुख के मुशोभित हो उठने का जो बिम्ब निर्मित होता है उसमे तारुण्य के आविर्भूत होने पर तरुणी के तन में आई रमणीयता का मानस प्रत्यक्ष है नाता है। इसी प्रकार - "उपदिशति कामिनीनां यौवनमद एव ललितानि"" में "उपदिशति'' क्रिया से गुरु द्वारा शिक्षा दिये जाने का चित्र निर्मित होता है उससे यौवन का असर आने पर कामिनियों में अपने आप विलासों के आविर्भूत हो जाने का स्वाभाविक नियम हृदयंगत होता है । क्रियाविशेषणाश्रित बिम्ब ___ “मन्दं मन्दं नुदति पवनश्चानुकूलो यथा त्वां ।"२ प्रस्तुत पद्यांश में “मन्दं मन्दं" क्रियाविशेषण “नुदति" क्रिया के स्वरूप का चित्र उपस्थित कर देता है। संवेदनापरक बिम्ब बिम्बों की तीन प्रमुख विशेषतायें हैं : ऐन्द्रियता (इन्द्रिय ग्राह्य विषय पर आश्रित होना), चित्रात्मकता और व्यंजकता । यहाँ ऐन्द्रियत्व या संवेदनात्मकता के आधार पर बिम्बों के उदाहरण प्रस्तुत किया जा रहे हैं । जैसा कि पूर्व में निर्देश किया गया है संवेदना के आधार पर बिम्ब की पाँच कोटियाँ हैं : दृष्टिपरक, स्पर्शपरक, घ्राणपरक, श्रवणपरक एवं स्वादपरक । "स्निग्यश्यामलकान्तिलिप्तवयतो वेल्लदबलाकाघनाः।" इस पूर्वोद्धृत उदाहरण में "स्निग्ध" और "श्यामल'' विशेषणों से क्रमशः स्पर्शपरक एवं दृष्टिपरक बिम्ब निर्मित होते हैं । "अप गीतावसाने मूकीभूतवीणा प्रशान्तमधुकररूतेव कुमुदिनी" (गीत समाप्त होने पर वीणा मूक हो गई जैसे कुमुदिनी पर भोरों का गुंजन शान्त हो गया हो) यहाँ “प्रशान्तमधुकररूता" विशेषण से कुमुदिनी के श्रवणपरक बिम्ब की सृष्टि होती है। १. काव्यप्रकाश २/१३, पृ०६८ पर उद्धृत २. पूर्वमेघ ९ ३. कादम्बरी - महाश्वेतावृत्तान्त, पृष्ठ २२
SR No.006193
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAradhana Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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