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________________ १२७ जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन विशेषणाधित बिम्ब निम्नलिखित उदाहरणों में विशेषणों से बिम्बों की सृष्टि हुई है सुवर्णपुष्पां पृथ्वी चिन्वन्ति पुरुषास्त्रयः । शूरश्च कृतिवियश्च यश्च जानाति सेवितुम् ॥' यहाँ "सुवर्णपुष्पा" यह विशेषण लक्षणा द्वारा पृथ्वी की सुलभसमृद्धिसम्भारभाजनता का बिम्ब निर्मित करता है । इसी प्रकार -- स्निग्यश्यामलकान्तिलिप्तवियतो वेल्लदबलाकाधना प्रस्तुत श्लोक में "स्निग्ध और श्यामल' विशेषण मेघों की चिकनी और काली कान्ति के स्पर्श चेतना एवं चाक्षुष चेतना को जगाने वाले बिम्ब निर्मित करते हैं जिनसे मेघों का चिकना काला स्वरूप मन में प्रत्यक्ष सा उपस्थित हो जाता है । क्रियाश्रित बिम्ब बिम्ब रचना में क्रिया का बड़ा महत्व है । क्रिया का लाक्षणिक प्रयोग करने पर बिम्ब निर्मित होता है । जैसे - उठ लहरि पर्वत की नाईं, होई फिरै जोजन लख ताई । धरती लेत सरग तेहि बाढ़ा, सकल समुन्द जान हुआ ठाढ़ा ॥ यहाँ “ठाढ़ा' क्रिया से निर्मित बिम्ब समुद्र के भीषण ज्वार का साक्षात्कार करा देता है। “तरन्तीवाङ्गानि स्खलदमललावण्यजलधी।"" प्रस्तुत पद्यांश में “तरन्ति" क्रिया से जल में तैरने वाले व्यक्ति का जो चित्र निर्मित होता है उससे प्रस्तुत तरुणी के अंगों की तारुण्यजनित चंचलता मन में साकार हो उठती "वतेन्दुवदना तनो तरुणिमोद्गमो मोदते ।"५ अहा, इस चन्द्रवदना के तन में तारुण्य का आविर्भाव किलोल कर रहा है । १. ध्वन्यालोक १/१९ पर उद्धृत २. वही, २/१ पर उद्धृत ३. जायसी की बिम्बयोजना - पृष्ठ ८० ४. वक्रोक्तिजीवित २/२४, पृष्ठ २५० पर उद्धृत ५. काव्यप्रकाश २/१३ पृ०६८ पर उद्धृत
SR No.006193
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAradhana Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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