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________________ १२९ जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन श्लथ श्वास निरन्तर झर झर झर नीरवता में मूदु मूदु मर्मर है काल विहग उड़ता फर फर ।' इन पंक्तियों में "झर झर झर", “मर्मर" एवं “फर फर' क्रिया विशेषण हमारी "नाद चेतना" का स्पर्श करने वाले (श्रवण परक) बिम्बों के निर्माता हैं । “सयः सीरोत्कषणसुरभिक्षेत्रमारुह्यमालं"रे ___ यहाँ “सद्यः सीरोत्कषणसुरभि" विशेषण माल क्षेत्र का घ्राण चेतना जगाने वाला बिम्ब प्रस्तुत करता है। "त्वय्यासने परिणतफलश्यामजम्बूवनान्ता"३ ___ इस उक्ति में “परिणतफलश्यामजम्बूवनान्ताः" विशेषण से दशार्ण देश का स्वादपरक बिम्ब निर्मित होता है। वामश्चायं नदति मधुरं चातकस्ते सगन्धः प्रस्तुत पद्यांश में "मधुरं" क्रिया विशेषण “नदति' क्रिया का श्रवणपरक बिम्ब उपस्थित करता है। “सोत्कम्पानि प्रियसहचरी सम्प्रमालिंगितानि" यहाँ “सोत्कम्पानि " विशेषण से प्रिय सहचरियों के सम्भ्रमपूर्वक किये गये आलिंगनों का स्पर्शपरक बिम्ब अनुभूतिगम्य होता है । "ताम्बूलीनद्ध"" इत्यादि पद में “कुहकुहाराव" शब्द से श्रोतपरक बिम्ब निर्मित होता है। बिम्ब और अलंकारादि में अन्तर उपमादि अलंकार बिम्ब के सर्जक हैं, अतः उनमें सादृश्य विधान एवं बिम्ब सर्जना दोनों ही गुण रहते हैं । किन्तु सादृश्य विधान की दृष्टि से उनमें ालंकारात्मकता होती है और बिम्ब विधान की दृष्टि से बिम्बात्मकता का सद्भाव होता है । इसी प्रकार लाक्षणिक प्रयोगों से भी बिम्ब निर्मित होते हैं । वहाँ लाक्षणिकता के कारण वे लाक्षणिक प्रयोग हैं १. मेधावी : रांगेय राघव, पृष्ठ ४२ २. पूर्वमेघ, १६ ३. वही, २३ ४. पूर्वमेघ, ९ ५. वक्रोक्तिजीवित, २/१०
SR No.006193
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAradhana Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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