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जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन
इस प्रकार शब्द का व्यंजकत्व दो प्रकार का होता है- अभिधाश्रित और लक्षणाश्रित। जहाँ शब्द का अभिधार्थ और लक्ष्यार्थ अभिप्रेत नहीं होता, व्यंग्यार्थ ही अभिप्रेत होता है, वहां "ध्वनि" संज्ञा होती है । '
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व्यंजकता का हेतु उक्ति की वक्रता
शब्द को व्यंजक बनाने वाला तत्व है उक्ति की वक्रता या प्रयोग वैचित्र्य । प्रसिद्ध काव्यशास्त्री कुन्तक ने वक्रता के निम्नलिखित भेद बतलाये हैं :--
१- वर्णविन्यासवक्रता
२- पदपूर्वार्धवक्रता
(क) रूढ़िवैचित्र्यवक्रता
(ख) पर्यायवक्रता
(ग) उपचारवक्रता
(घ) विशेषणवक्रता
(ङ) संवृतिवक्रता
(च) पदमध्यान्तर्भूतप्रत्ययवक्रता
(छ) वृत्तिवैचित्र्यवक्रता
(ज) भाववैचित्र्यवक्रता
(झ) लिंगवैचित्र्यवक्रता
(ञ) क्रियावैचित्र्यवक्रता
३- पदपरार्धवक्रता
(क) कालवैचित्र्यवक्रता
कारकवक्रता
(ग) संख्यावक्रता
(घ) पुरुषवक्रता
(ङ) उपग्रहवक्रता
(च) प्रत्ययान्तरक्कता (छ) उपसर्गवक्रता
१. यत्रार्थः शब्दो वा तमर्थमुपसर्जनीकृतस्वार्थी ।
व्यङ्क्तः काव्यविशेषः स ध्वनिरिति सूरिभिः कथितः ॥ ध्वन्यालोक, १ / १३