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________________ जोर जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन महाकवि ने काव्य के कुछ सर्ग में एक ही छन्द का प्रयोग कर अन्त में छन्द परिवर्तित किया है तथा कुछ सर्गों में तीन, चार या उससे अधिक छन्दों का प्रयोग किया है और अन्त में छन्द बदल दिया है । जयोदय के प्रत्येक सर्ग का नामकरण उसमें वर्णित कथांश के आधार पर किया गया है । जैसे अन्तिम सर्ग में जयकुमार के मोक्षप्राप्ति की घटना का चित्रण किया है, अतः इस सर्ग का नाम “तपः परिणाम" है । प्रत्येक सर्ग के अन्त में अग्रिम सर्ग के घटना की सूचना मिलती है। काव्य शब्दालंकार, अर्थालंकार के भेदों एवं चक्रबन्ध चित्रालंकार से अलंकृत है। इसमें अप्रत्यक्ष रूप से नायक के गुण वर्णन द्वारा सज्जन की प्रशंसा और प्रतिनायक अर्ककीर्ति के पराभव के चित्रण से दुर्जन की निन्दा की गई है ।' ___ महाकाव्य का नाम भी नायक जयकुमार के नाम पर रखा गया है । नायक की भौतिक एवं आध्यात्मिक उन्नति का चित्रण होने से इसका जयोदय नाम सार्थक है । इसके अतिरिक्त महाकवि को काव्य का "सुलोचना स्वयंवर' नाम भी अभिप्रेत है । इस नामकरण का आधार है - काव्य की प्रमुख घटना स्वयंवर सभा में सुलोचना द्वारा जयकुमार का वरण। इस घटना के आधार पर जयकुमार व अर्ककीर्ति का युद्ध होता है और जयकुमार के पराक्रम का परिचय मिलता है । काव्य के दोनों ही नाम मान्य हैं पर "जयोदय' संक्षिप्त और सार्थक नाम है। जयोदय का उपर्युक्त वैशिष्ट्य उसे महाकाव्योचित गरिमा प्रदान करने में पूर्ण समर्थ तथा सक्षम भी है। जयोदय की काव्यात्मकता ___वाक्यं रसात्मकं काव्यम्' अर्थात् जो उक्ति सहृदय को भावमग्न कर दे, मन को छू ले, हृदय को आन्दोलित कर दे, उसे काव्य कहते हैं । काव्य की यह परिभाषा साहित्य दर्पणकार आचार्य विश्वनाथ ने की है, जो अत्यन्त सरल और सटीक है । ऐसी उक्ति की रचना तब होती है जब मानवचरित, मानव आदर्श एवं जगत् के वैचित्र्य को कलात्मक रीति से प्रस्तुत किया जाता है । कलात्मक रीति का प्राण है भाषा की
SR No.006193
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAradhana Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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