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________________ जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन आदिपुराण में वर्णित जयकुमार एवं सुलोचना की कथा पर जयोदय की कथावस्तु आधारित है । जयोदय का नायक जयकुमार है । वह क्षत्रिय कुलोत्पन्न, धीरोदात्त, चतुर एवं सर्वगुणसम्पन्न है । वह भरत चक्रवर्ती का सेनापति है । वह धर्म, अर्थ एवं काम पुरुषार्थ में रत रहते हुए अन्त में तपस्या द्वारा निःश्रेयस् सुख (मोक्ष) प्राप्त करता है । इस प्रकार जयोदय में पुरुषार्थ चतुष्टय के वर्णन द्वारा काव्य का महदुद्देश्य स्पष्ट किया गया है। ___ कवि ने जयोदय में पर्वत', नदी', वन, सूर्योदय, सूर्यास्त', चन्द्रोदय, चन्द्रास्त, प्रभात', सन्ध्या', अन्धकार, एवं रात्रि का सजीव वर्णन किया है। इसमें काशी१२, हस्तिनापुर ३, एवं अयोध्या तथा नगरियों का तथा वनक्रीड़ा'५, जलक्रीड़ा ६, पानगोष्ठी, सुरत क्रीड़ा, विवाह ९, दूताभिमान२०, संवाद और तीर्थयात्रा२२ प्रभृति का चित्रण किया गया है । इसका नायक प्रतिपक्षी अर्ककीर्ति एवं अन्तःशत्रु काम, क्रोधादि को पराजित कर उन पर विजय प्राप्त करता है२३ । इस प्रकार अन्तः एवं बाह्य शत्रुओं पर विजय प्राप्ति का वर्णन नायकाभ्युदय को संकेतित करता है । इसमें दो स्थलों पर मुनि एवं उनके द्वारा दिये गये धर्मोपदेशों का भी वर्णन है । जयोदय में अंगी रस शान्त है, शृंगार, वीर, भयानक, वीभत्स एवं हास्यादि रस शान्तरस को पुष्ट करते हैं। प्रस्तुत महाकाव्य की कथावस्तु पंच सन्धियों में विभाजित की गई है । प्रथम सर्ग में मुख सन्धि है, तृतीय एवं चतुर्थ सर्ग का कथांश प्रतिमुख सन्धि है । षष्ठ सर्ग गर्भ सन्धि का घोतक है । सप्तम सर्ग से चतुर्विंशति सर्ग को विमर्श सन्धि कहा जा सकता है । अन्तिम चार सर्ग उपसंहरि पन्धि को सूचित करते हैं। १. जयोदय, २४/२-५७ १३. जयोदय, २१ वा सर्ग २. वही, १३/५३-५९ १४. वही, २०/२-६ ३. वही, १४/४-६, २१/४१-६४ १५. वही, १४/७-९९ ४. वही, १८/१-३२, १६. वही, १४ वाँ सर्ग ५. वही, १५/१-९ १७. वही, १७वा सर्ग ६. वही, १५/९, ७४-८२ १८. वही, १७ वाँ सर्ग ७. वही, १८/६३ १९. वही, सर्ग १० से १२ ८. वही, सर्ग १८ २० वही, ३/२१-९५,७५६-७३,९/५८-६४ ९. वही, १५/३७-५३ २१. वही, सर्ग ७ वा सर्ग १०. वही, १५/३५-३७ २२. वही, २४ वाँ सर्ग ११. वही, १५/३८-१०८ २३. वही, सर्ग ८ एवं २८ वा सर्ग १२. वही, ३/३० २४. वही, सर्ग - २५ एवं २८ वा सर्ग
SR No.006193
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAradhana Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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