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________________ जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन तदनन्तर वे अपनी द्वितीय पुत्री अक्षमाला का विवाह अर्ककीर्ति के साथ कर देते हैं । अकम्पन उक्त सभी समाचार दूत द्वारा भरत चक्रवर्ती के समीप भेजते हैं । सम्राट भरत उनके कार्य से प्रसन्न होते हैं। मन्त्री का पत्र प्राप्त कर जयकुमार अकम्पन से आज्ञा लेकर हस्तिनापुर प्रस्थान कर देते हैं। सुलोचना के भाई भी उनके साथ जाते हैं । मार्ग में गंगा नदी आने पर पड़ाव डालते हैं । दूसरे दिन जयकुमार अकेला सम्राट भरत से मिलने अयोध्या पहुँचता है । वह सभा भवन में पहुँच कर सिंहासन पर विराजमान चक्रवर्ती भरत को नमन करता है । सम्राट् उसे मधुर वचनों से सन्तुष्ट कर काशी के समाचार ज्ञात करते हैं और उसे तथा सुलोचना को वस्त्राभूषण प्रदान कर सम्मानित करते हैं । सम्राट् से अनुमति लेकर जयकुमार हाथी पर बैठकर वापिस गंगा नदी के तट पर आता है । वह वहाँ शुष्क वृक्ष की एक शाखा के अग्रभाग पर एक कौए को सूर्य की उन्मुख होकर रोते हुए देखता है । अपशकुन के कारण जयकुमार सुलोचना के अनिष्ट की आशंका करते हुए मूर्छित हो जाता है । पुरोहित के वचनों से आश्वस्त होकर पुनः यात्रा प्रारम्भ करता है । सरयू और गंगा नदी के संगम पर काली देवी मगर का रूप धारणकर जयकुमार के हाथी को पकड़ लेती है । हाथी को डूबता देखकर सभी उसे बचाने का प्रयास करते हैं । सुलोचना भी पञ्च-नमस्कार मन्त्र का स्मरण कर गंगा में प्रविष्ट होती है । गंगा देवी उक्त वृत्तान्त जानकर काली देवी को डाँटती है तथा सभी को नदी के तट पर पहुँचाती है तथा सुलोचना का भव्य सत्कार करती है । यह देख जब जयकुमार आश्चर्यचकित होता है तो सुलोचना पूर्व जन्म का वृत्तान्त बतलाकर उसकी जिज्ञासा शान्ति करती है । जयकुमार गंगादेवी का आभार व्यक्त कर उसे बिदा करता है । __ दूसरे दिन पुनः यात्रा प्रारम्भ कर जयकुमार और सुलोचना हस्तिनापुर पहुँचते हैं। वहाँ प्रजावर्ग एवं सभासद सभी उनका स्वागत करते हैं । जयकुमार एक दिन शुभ मुहूर्त में उत्सव का आयोजन कर सुलोचना को उसके हेमांगद आदि भ्राताओं के समक्ष सुलोचना के मस्तक पर पट्टरानी का पट्ट बाँधता है । कुछ समय बाद सुलोचना के हेमांगद आदि सभी भाई काशी आ जाते हैं । अकम्पन भी अपने पुत्र को राज्य सौंपते हैं एवं जिन-दीक्षा अंगीकार कर तप करते हुए केवलज्ञानी हो जाते हैं। एक बार जयकुमार और सुलोचना महल की छत पर बैठे थे । जयकुमार कृत्रिम हाथी पर बैठे विद्याधर दम्पत्ति को देखकर पूर्व जन्म का स्मरण होने से "हा मेरी प्रभावती" कहते हुए मूर्छित हो जाता है। सुलोचना भी उसी समय कपोत युगल देखती है और "हा मेरे रतिवर" कह कर अचेत हो जाती है। शीतल उपचार से उनकी मूर्छा भंग होती है । जयकुमार सुलोचना
SR No.006193
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAradhana Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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