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________________ जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन भी सुनता है । एक समय पुनः जयकुमार वन में जाता है । वह उक्त सर्पिणी को अन्य सर्प के साथ रमण करते देखता है । वह उसे पृथक् करने का प्रयास करता है । सैनिक भी उन्हें कंकड़ पत्थर से आहत कर देते हैं । जिससे सर्पिणी अपने पूर्व पति नागकुमार की पली बनती है और सर्प गंगा नदी में काली नामक जलदेव के रूप में जन्म लेता है । सर्पिणी उक्त वृत्तान्त द्वारा अपने पति को जयकुमार के विरुद्ध उत्तेजित करती है तो वह क्रोधित होकर उसे मारने के लिए उसके महल में जाता है । वहाँ जयकुमार के मुख से वन का वृत्तान्त सुनता है तो उसका अज्ञान दूर हो जाता है । जयकुमार की पूजा कर उसका सेवक बन जाता है। भरत क्षेत्र की काशी नगरी के राजा अकम्पन एवं रानी सुप्रभा थी, जिनके एक हजार पुत्र और सुलोचना तथा अक्षमाला नामक दो पुत्रियाँ थीं । सर्वगुण सम्पन्न सुलोचना अष्टाह्निका पर्व की पूजन कर शेषाक्षत देने पिता के समीप जाती है । शेषाक्षत ले पिता पुत्री को पारणा करने के लिये कहते हैं । अपनी पुत्री को पूर्ण युवती देख वे उसके विवाह के विषय में चिन्तित होते हैं । मन्त्रियों की सलाह से वे स्वयंवर करने का निश्चय करते हैं । स्वयंवर आयोजित करने हेतु विभिन्न देशों के राजकुमारों को आमंत्रित करते हैं । सभी राजकुमारों के स्थान ग्रहण करने पर वस्त्राभूषणों से अलंकृत सुलोचना जिनेन्द्र पूजनकर स्वयंवर मण्डप में आती है । महेन्द्रदत्त कंचुकी सुलोचना को क्रमशः सभी आगन्तुक राजाओं से परिचित कराता है । सुलोचना हस्तिनापुर नरेश जयकुमार से प्रभावित होकर उसे वरमाला पहनाती है। ... सुलोचना द्वारा जयकुमार के वरण को दुर्मर्षण अनुचित मानता है । वह अपने स्वामी अर्ककीर्ति और अन्य राजागण को अकम्पन के विरुद्ध उत्तेजित करता है । क्रोधित हो अर्ककीर्ति युद्धोन्मुख हो जाता है । अर्ककीर्ति को उसका अनवद्यमति मन्त्री एवं राजा अकम्पन का दूत अनेक प्रकार से समझाते हैं । वह उनकी बात न मानकर सेनापति द्वारा युद्ध का डंका बजवा देता है । युद्ध के डंके को सुनकर जयकुमार अकम्पन से सुलोचना की रक्षा हेतु निवेदन करता है और स्वयं अपने भाईयों एवं अन्य राजाओं के साथ युद्ध क्षेत्र में जाता है । वह नागकुमार देव द्वारा प्राप्त अर्धचन्द्र बाण से युद्ध में अर्ककीर्ति को पराजित कर नागपाश में बाँध लेता है और उसे अकम्पन को सौंपता है। युद्ध से निवृत्त हो सभी जिनेन्द्र भगवान् की पूजा करते हैं । राजा अकम्पन अर्ककीर्ति को समझाते हैं। उनके प्रयास से जयकुमार तथा अर्ककीर्ति की सन्धि होती है।
SR No.006193
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAradhana Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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