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________________ 92 संलेखना स्वीकार करते हैं और निरपवाद प्रयत्नपूर्वक जीवन पर्यंत का (आहारादि का) प्रत्याख्यान करते हैं, इसका जिस अध्ययन में सविस्तार वर्णन किया गया है, वह अध्ययन महाप्रत्याख्यान है।' महाप्रत्याख्यान के विषय में नन्दीचूर्णि की इस व्याख्या से ऐसा लगता है कि उस समय स्थविरकल्पिकों और जिनकल्पिकों को संलेखना विधि में अंतर था। स्थविरकल्पी वृद्धावस्था की स्थिति को जानकर अपनी विहारचर्या को स्थगित कर देते थे और एक स्थान पर स्थित होकर (स्थिरवास करके) क्रमिक रूप से आहारादि का त्याग करते हुए बारह वर्ष तक की दीर्घ अवधि की संलेखना करते थे। इसका एक तात्पर्य यह भी है कि वे आहारादि में धीरे-धीरे कमी करते हुए क्रमशः आहारादि के संपूर्ण त्याग की दिशा में आगे बढ़ते थे, जबकि जिनकल्पीसतत् रूपसे विहार करते थे और जब उन्हें यह आभास हो जाता है कि अब विहारचर्या संभव नहीं है तो वे आहारादि का त्याग करके संलेखनास्वीकार कर लेते थे। इस तथ्य की पुष्टि वर्तमान में श्वेताम्बर और दिगम्बर परंपरा की प्रचलित संलेखना विधि से हो जाती है। दिगम्बर परम्परानुसार जब मुनि विहार करने में असमर्थ हो जाते है, तो वह मुनि संलेखना स्वीकार कर लेता है क्योंकि इस परंपरा में दूसरों के द्वारा लाए गए आहार को ग्रहण करने की परंपरा नहीं है, जबकि श्वेताम्बर परम्परानुसार वृद्धावस्था में मुनि स्थिरवास हो जाते हैं और क्रमशः आहारादि कम करते हुए संलेखना स्वीकार करते हैं। यह अलग बात है कि स्थिरवास हो जाने के पश्चात्भी सभी मुनि आहारादिकम नहीं करते हैं। नन्दीचूर्णि में स्थविरकल्पियों और जिनकल्पियों को जो भिन्न-भिन्न संलेखना विधि बतलाई गई है, वह इन दोनों कल्पों की चर्या की दृष्टि से उचित प्रतीत होती है। आज भी दिगम्बर मुनि किसी न किसी रूप में जिनकल्प का पालन तो करते ही है और श्वेताम्बर मुनि स्थविरकल्प के निकट है। यह एक अलग बात है कि आज बारह वर्ष को संलेखना करने की विधिप्रचलन में नहीं रह गई है किन्तु बारह वर्ष की इस संलेखना विधि का उल्लेख दिगम्बर परंपरा के द्वारा मान्य यापनीय ग्रंथ भगवती आराधना में भी मिलता है। यापनीय परंपरा तोआपवादिक स्थिति में दूसरों के द्वारा लाए गएआहार 1. नन्दीसूत्रचूर्णि, पृष्ठ 50 (प्राकृत टेक्स्ट सोसायटी, वाराणसी) 2. भगवती आराधना, गाथा 2541
SR No.006192
Book TitlePrakrit Ke Prakirnak Sahitya Ki Bhumikaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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