________________
91
3. महाप्रत्याख्यान - प्रकीर्णक
महाप्रत्याख्यान - यह प्रकीर्णक (महापच्चक्खाण-पइण्णयं) प्राकृत भाषा की एक पद्यात्मक रचना है। इसका सर्वप्रथम उल्लेख नन्दीसूत्र एवं पाक्षिक सूत्र में प्राप्त होता है। दोनों ही ग्रंथों में आवश्यक - व्यतिरिक्त उत्कालिक श्रुत के अंतर्गत 'महाप्रत्याख्यान' का उल्लेख मिलता है।
पाक्षिक सूत्र वृत्ति में महाप्रत्याख्यान का परिचय देते हुए कहा गया है"महाप्रत्याख्यानम् अत्रायं भावः स्थविरकल्पिका विहारेणैव संलीढ़ा प्रान्तेऽनशनौच्चारं कुर्वन्ति, एवमेतत्सर्वम् सविस्तरं वर्ण्यते यत्र तन्महाप्रत्याख्यानम्।" अर्थात् जोस्थविरकल्पीजीवन की सन्ध्यावेला में विहार करने में असमर्थ होते हैं, उनके द्वारा जो अनशनव्रत (समाधिमरण) स्वीकार किया जाता है, उन सबका जिसमें विस्तार से वर्णन किया गया है, उसे महाप्रत्याख्यान कहते हैं इस प्रकार पाक्षिक सूत्र वृत्ति में मात्र स्थविरकल्पिको के समाधिमरण का ही उल्लेख मिलता है। जिनकल्पी समाधिमरण कैसे स्वीकारते हैं, इस संबंध में पाक्षिक सूत्र वृत्ति में कोई विवेचन नहीं दिया गया है।
नन्दीसूत्र चूर्णि में महाप्रत्याख्यान का परिचय देते हुए कहा गया है - “थेरकप्पेणं जिणकप्पेण वा विहरित्ता अंते थेरकप्पिया बारस वासे संलेहं करेत्ता, जिणकप्पिया पुण विहारेणेव संलीढा तहा वि जहाजुत्तं संलेहं करेत्ता निव्वाघातं सचेट्ठा
चेव भवचरिमं पच्चक्खंति, एतं सवित्थरं जत्थऽझयणे वण्णिजंति तमज्झयणं महापच्चक्खाणं।" अर्थात् स्थविरकल्प और जिनकल्प के द्वारा विचरण करने वालों में से स्थविरकल्पी अंतिम समय में (स्थिरवास करके) बारह वर्ष में संलेखना करते है जबकि जिनकल्पी विहार करते हुए हीसंलेखनाके योग्य अवसर आजाने पर
1. (क) उक्कालिअंअणेगविहंपण्णत्तं तं जहा- (1) दसवेआलिय...
महापच्चक्खाणं, (29) एवमाइ। - नन्दीसूत्र- मधुकर - मुनि - पृष्ठ 161-162, (ख) नमो तेसिं खमासमणाणं ..... अंगबाहिरं उक्कालियं भगवंतं । तं जहा - दसवेआलियं (1) ...... महापच्चक्खाणं (28)। (पाक्षिक सूत्र - देवचन्द्रलालभाई जैन, पुस्तकोद्धार, पृष्ठ6) 2. पाक्षिक सूत्र, पृष्ठ78।