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________________ 85 (29) असंखिज्जाणं समयाणं समुदयसमिति - समागमेणं सा एगा आवलि अत्तिवुच्चइ, संखेज्जाओ आवलियाओ ऊसासो, संखिज्जाओ आवलियाओ नीसासो । + (30) हट्ठस्स अणवगल्लस्स, निरुवकिट्ठस्स जंतुणो । एगे ऊसास - नीसासे, एस पाणु त्ति वुच्चइ ॥ ( 31 ) सत्त पाणुणि से थोवे सत्त थोवाणि से लवे। लवाणं सत्तहत्तरिए एस मुहुत्ते वियाहिए ॥ ( अनुयोगद्वार - घासी, पृ. 248 ) ( 32 ) तिण्णि सहस्सा सत्त य सयाइं तेहुत्तरिं च ऊसासा । एस मुहुत्तो भणिओ, सव्वेहिं अणंतनाणीहिं ॥ ( अनुयोगद्वार - घासी., पृ. 248 ) ( 33 ) एएणं मुहुत्त - पामाणेणं तीसं मुहुत्ता अहोरत्तं । पण्णरस अहोरत्ता पक्खा, दो पक्खा मासा ॥ ( अनुयोगद्वार - घासी., II - 248 ) (34) जंपि य इमं सरीरं इट्ठ, कंतं, पियं मणुण्णं मणामं, पेज्जं, थेज्जं, वेसासियं संयमं बहुमयं अणुमयं भंडकरंडगसमाणं माणं सीयं मा णं उन्हं मा णं खुहा मा णं पिवासा, मा णं वाला माणं चोरा माणं दंसा मा णं मसगा, मा णं वाइयपित्तियसंनिवाइय विविहा रोगायंका परीसहोवसग्गा फुसंतु त्ति कट्टु ...... ( औपपातिकसूत्र - मधु., पृ. 138)
SR No.006192
Book TitlePrakrit Ke Prakirnak Sahitya Ki Bhumikaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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