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(29) कालो परमनिरुद्धोअविभज्जोतं तुजाण समयं तु। समयावअसंखेज्जा हवंति उस्सास - निस्सासे॥
(तंदुलवैचारिक, गाथा - 82)
(30) हठ्ठस्सअणवगल्लस्स निरुवकिट्ठसजंतुणो। ___एगेऊसास- नीसासे एस पाणु त्तिवुच्चई॥
(तंदुलवैचारिक, गाथा - 82) (31) सत्त पाणूणिसे थोवे, सत्तथोवाणिसे लवे। लवाणंसत्तहत्तरिएएस मुहुत्ते वियाहिए॥
. (तंदुलवैचारिक, गाथा - 84) एगमेगस्सणंभंते! मुहत्तस्स केवइया ऊसासा वियाहिया? गोयमा! (32) तिन्निसहस्सासत्त यसयाई तेवत्तरिंचऊसासा। . एस मुहत्तोभणिओसव्वेहिंअणंतनाणीहिं॥
_ (तंदुलवैचारिक, गाथा - 84) (33) दो नालिया मुहुत्तो, सट्ठिपुणनालियाआहोरत्तो। पन्नरस अहोरत्ता पक्खो, पक्खादेवेमासो॥
(तंदुलवैचारिक, गाथा - 86) (34) आउसो ! जं पि य इमं सरीरं इट्ट पियं कंतं मणुण्णं मणामं मणाभिरामं थेजं वेसासियं सम्मयं बहुमयं अणुमयं भंडकरंडगसमाणं, रयणकरंडओ विवसुसंगोवियं, चेलपेडा विवसुसंपरिखुडं, तेल्लपेडा विव सुसंगोवियं माणं उण्हंमा णं सीयं माणंखुहा माणं पिवासा माणंचोरामाणं वाला माणं दंसा माणं मसगा माणं वाइय-पित्तिय-सिंभिय-सन्निवाइया विविहा रोगायंका फुसंतुत्ति कटु । एवं पि याई अधुवं अनिययं असासयं चओ वचइयं विप्पणासधम्मं, पच्छा व पुरा व अवस्स विप्पचइयव्वं॥
(तंदुलवैचारिक, गाथा - 84)