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________________ 77 (11) दोण्हं पिरत्तसुक्काणं तुल्लभावे णपुंसगो। इत्थी-ओय-समाओगे, बिंब तत्थ पजायइ॥ ___(स्थानांगसूत्र - 4-4-642) (संग्रहणी गाथा) (12) वाससताउयस्स णं पुरिसस्स दस दसाओ पण्णत्ताओ, तंजहा-संग्रह श्लोक बाला किड्डा य मंदा य बला पण्णा य हायणी पवंचा पव्भारा य मुम्मुही सायणी तधा॥ (स्थानांगसूत्र - 10-10-154) (13) जा यमित्तस्स जंतुस्स जा सा पढमिया दसा। . ण तत्थ सुहदुक्खाई बहु जाणंति बालया 1॥ .. (दशवैकालिक हारिभद्रीअ वृत्ति पत्र 8;9). (14) बीयइं च दसं पत्तो णाणाकिड्डाहिं किड्डइ। न तत्थ कामभोगेहिं तिव्वा उप्पज्जए मई ॥ (ठाणं -नथ. पृ. 1015) (15) तइयं च दसं पत्तो पंच कामगुणे नरो। समत्थो भुंजिउं भोए जइ से अत्थि धरे धुवा।। (ठाणं - पृ. 1015) (16) चउत्थी उ बला नाम जं नरो दसमस्सिओ। समत्थो बलं दरिसेऊ जइ होइ निरूवद्दवो (ठाणं - पृ. 1015) (17) पंचमी तु दसं पत्तो आणुपुव्वीइ जो नरो। इच्छियत्थं विचिंतेइ कुडुंबं वाऽभिकंखई॥ (ठाणं - पृ. 1015) (18) छट्ठी उ हायणी नाम जं नरो दसमस्सिओ। विरज्जइ य कामेसु इदिएसु य हायई ॥ (ठाण - पृ. 1015)
SR No.006192
Book TitlePrakrit Ke Prakirnak Sahitya Ki Bhumikaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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