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________________ (11) दोण्हं पिरत्त-सुक्काणं तुल्लभावे नपुंसगो। इत्थीओयसमाओगे बिंब तत्थ पजायइ॥ ___ (तंदुलवैचारिक, गाथा-36) (12) आउसो ! एवं जायस्स जंतुस्स कमेण दस दसाओ एवमाहिज्जति। तं जहा बाला 1 किड्डा 2 मंदा 3 बला 4 य पन्ना 5 य हायणि 6 पवंचा 7। . पन्भारा 8 मुम्मुही 9 सायणी य 10 दसमा 10 य कालदसा॥ (तंदुलवैचारिक, गाथा - 45) (13) जायमित्तस्स जंतुस्स जा सा पढमिया दसा। न तत्थ सुक्ख दुक्खं वा छुहं जाणंति बालया 1॥ (तंदुलवैचारिक, गाथा-46) (14) बीयं च दसं पत्तो नाणाकीडाहिं कीडई। न य से कामभोगेसु तिव्वा उप्पज्जए मई 2 ॥ . (तंदुलवैचारिक, गाथा-44) (15) तइयं च दसंपत्तो पंच कामगुणे नरो। समत्थो भुंजिउं भोगे जइ से अस्थि घरे धुवा 3 ॥ (तंदुलवैचारिक, गाथा-48) (16) चउत्थी उ बला नाम जं नरो दसमस्सिओ। समत्थो बलं दरिसेउं जइ सो भवे निरुवद्दवो 4 ॥ (तंदुलवैचारिक, गाथा-49) (17) पंचमी उ दसं पत्तो आणुपुव्वीइ जो नरो। समत्थो अत्थं विचिंतेउं कुटुंबं चाभिगच्छई 5 ॥ (तंदुलवैचारिक, गाथा-50) (18) छट्ठी उ हायणी नाम जं नरो दसमस्सिओ। विरज्जइ काम-भोगेसु, इंदिएसु य हायई 6॥ (तंदुलवैचारिक, गाथा-51)
SR No.006192
Book TitlePrakrit Ke Prakirnak Sahitya Ki Bhumikaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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