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________________ 63) व्यक्ति को यह विचार कभी नहीं करना चाहिए कि अभी तो इतने दिनों, महिनों अथवा वर्षों तक जीना है। अतः बाद में व्रत-नियमों का पालन कर लूँगा, क्योंकि इस जीवन का क्षणभर का भी विश्वास नहीं है। यह कोई नहीं जानता कि कब रोग अथवा मृत्युआकर हमें दबोचले। (तन्दु64) चक्रवर्ती, तीर्थंकर आदि की देह रिद्धि- पहले व्यक्ति हजारों, लाखों वर्ष जीवित रहते थे, उनमें जो विशिष्ठ, चक्रवर्ती, तीर्थंकर, यौगलिक आदि पुरुष होते थे, वेअत्यंत सौम्य सुंदर, उत्तम लक्षणों से युक्त, श्रेष्ठ गज की गति वाले, सिंह की कमर के समान कटि प्रदेश वाले, स्वर्ण के समान क्रांति वाले, रागादि उपसर्ग से रहित, श्रीवत्स आदिशुभ चिन्हों से चिन्हित वक्षस्थल वाले, पुष्ठ व मांसल हाथों वाले, चंद्रमा, सूर्य, शंख, चक्र आदि के चिन्हों से युक्त हथेलियों वाले, सिंह के समान कन्धों वाले, सारस पक्षी के समान स्वर वाले, विकसित कमल के समान मुख वाले, उत्तम व्यंजनों, लक्षणों आदिसेपरिपूर्ण होतेथे। (तन्दु 65)। शतायुष्य मनुष्य का आहार परिमाण- सौ वर्ष जीने वाला मनुष्य बीस युग, दो सौ अयन, छ: सौ ऋतु, बारह सौ. महिने, चौबीस सौ पक्ष, चार सौ सात करोड़ अड़तालिस लाख चालीस हजार श्वासोश्वास जीता है और इससमयावधि में वह साढ़े बाईस वाह तंदुल खाता है। एक वाह में चार सौ साठ करोड़ अस्सी लाख चालव के दाने होते हैं। इस प्रकार मनुष्य साढ़े बाईस वाह तंदुल खाता हुआ साढ़े पाँच कुंभ मूंग, चौवीस सौ आढक घृत और तेल, छत्तीस हजार पल नमक खाता है। अगर प्रतिमाह वस्त्र बदले तो संपूर्ण जीवन में बारह सौधोतीधारण करता है। यहाँ यह स्पष्ट कर दिया है कि मनुष्य सौ वर्ष तक जीवित रहे और उसके पास यह सब उपभोग योग्य सामग्री हो तभी इस सामग्री का उपभोग वह कर पाता है। जिसके पास खाने को ही नहीं हो वह इनकाउपभोग कैसे करेगा? (तन्दु 66-81) . समय उच्छ्वास आदि का काल परिमाण- सर्वाधिक सूक्ष्म काल का वह अंश जो विभाजित नहीं किया जा सके, समय कहलाता है। एक उच्छ्वास निःश्वास में असंख्य समय होते हैं। एक उच्छ्वास निःश्वास को ही प्राण कहते हैं, सात प्राणों का एक स्तोक, सात स्तोकों का एक लव, सत्तहत्तर लवों का एक मुहूर्त, तीस मुहूर्त या साठ घड़ी का एक दिन-रात, पंद्रह अहोरात्र का एक पक्ष और दो पक्ष का एक महिना होता है। (तन्दु. 82-86) बारहमास का एक वर्ष होता है। एक वर्ष में 360 रात-दिन होते हैं। एक रात-दिन में एक लाख तरह हजार एक सौ नब्बे उच्छ्वास होते हैं। (94
SR No.006192
Book TitlePrakrit Ke Prakirnak Sahitya Ki Bhumikaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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