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सूत्र में तंदुलवैचारिक का उल्लेख है, अतः इस प्रमाण के आधार पर हम केवल इतना ही कह सकते हैं, कि यह ग्रंथ ईस्वी सन् की 5वीं शताब्दी के पूर्व निर्मित हो चुका था। किन्तु इसकी अपर सीमा क्या थी, यह कहना कठिन है। स्थानांगसूत्र में मनुष्य जीवन की दस दशाओं का उल्लेख हमें मिलता है। यह निश्चित है कि तंदुल वैचारिक की रचनाका आधार मानव-जीवन की ये दस दशाएँ ही रही है। इसी प्रकार तंदुलवैचारिक में गर्भावस्था का, जो विवरण उपलब्ध होता है,वह पूर्ण रूप से भगवती सूत्र में उपलब्ध है। इसमें वर्णित संहनन एवं संस्थानों की चर्चा भी स्थानांग, समवायांग एवं भगवती में उपलब्ध होती है। अतः हम यह कह सकते हैं कि इसकी रचनास्थानांग और भगवती सूत्र के पश्चात् ही कभी हुई होगी। स्थानांग में महावीर के नौ गणों और सात निण्हवों का उल्लेख होने से उसे ईस्वी सन प्रथम या द्वितीय शताब्दी के आसपास की रचना माना जाता है। यदि इसकी रचना का आधार स्थानांग, भगवती, अनुयोगद्वार
और औपपातिकको माना जाये, तो हम यह कह सकते हैं कि तंदुलवैचारिक की रचना ईस्वी सन्की द्वितीय शताब्दी से ईस्वी सन् की 5वीं शताब्दी के बीच कभी हुई होगी।
भाषा और शैली की दृष्टि से भी इसका रचना काल यही माना जा सकता है, क्योंकि इसकीभाषाभी महाराष्टी प्रभाव युक्त अर्द्धमागधी है। यद्यपि इसमें कुछ विवरण ऐसे भी है जो आवश्यक एवं पक्खी सूत्र में उपलब्ध होते हैं। तीर्थंकर, चक्रवर्ती आदि के शरीर का जो वर्णन इसमें उपलब्ध होता है, वह प्रश्न व्याकरण में भी उपलब्ध है। किन्तु उपलब्ध प्रश्न- व्याकरण नंदी और नंदी चूर्णि के बीच कभी बना है, जबकि तंदुलवैचारिक का उल्लेख स्वयं नंदी सूत्र में है। अतः यह मानना होगा कि प्रश्नव्याकरण में यह विवरण या तो तंदुलवैचारिक से याऔपपातिक से लिया गया है। हमारी दृष्टि में तीर्थंकर चक्रवर्ती आदि शरीर संबंधी यह विवरण औपपातिक से ही प्रश्नव्याकरणऔर तंदुलवैचारिक में आया होगा।
यद्यपि यह कल्पना भी की जा सकती है कि तंदुलवैचारिक से ही यह समग्र विवरण स्थानांग भगवती, औपपातिक आदि में गये हों, क्योंकि तंदुलवैचारिक अपने विषय का क्रमपूर्वक और सुनियोजित रूपसे विवरण देने वाला एक संक्षिप्त ग्रंथ है और ऐसे संक्षिप्त ग्रंथ अपेक्षाकृत रूप से प्राचीन स्तर के माने जाते हैं । चाहे हम इस तथ्य को स्वीकार करें या न करें किन्तु इतना अवश्य कह सकते हैं कि तंदलुवैचारिक ईस्वी सन् की प्रथम शताब्दी से लेकर पाँचवीं शताब्दी तक के बीच कभी निर्मित हुआ होगा।
विषय वस्तु- 'तंदुलवैचारिक' इस नाम से ऐसा प्रतीत होता है कि मानो इसमें