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लेखक एवं रचनाकाल का विचार- तंदुलवैचारिक का उल्लेख यद्यपि नंदीसूत्र आदि अनेक ग्रंथों में मिलता है किन्तु इस ग्रंथ के लेखक के संबंध में कहीं पर भी कोई निर्देश उपलब्ध नहीं होता है। जो संकेत हमें मिलते हैं उसके आधार पर मात्र यही कहा जा सकता है कि यह 5वीं शताब्दी या उसके पूर्व के किसी स्थविर आचार्य की कृति है। इसके लेखक के संदर्भ में किसी भी प्रकार का कोई संकेत सूत्र उपलब्ध न हो पाने के कारण इस संबंध में कुछ भी कहना कठिन है।
किन्तु जहाँ तक इस ग्रंथ के रचना काल का प्रश्न है, हम इतना तो सुनिश्चित रूपसे कह सकते हैं कि यह ईस्वी सन् की 5वीं शताब्दी के पूर्व की रचना है क्योंकि तंदुलवैचारिक का उल्लेख हमें नंदीसूत्र एवं पाक्षिक सूत्र के अतिरिक्त नंदी चूर्णि, आवश्यक चूर्णि, दशवैकालिक चूर्णि और निशीथ चूर्णि मे मिलता है। चूर्णियों का काल लगभग 6-7वीं शताब्दी माना जाता है। अतः तंदुलवैचारिक का रचना काल इसके पूर्व ही होना चाहिए। पुनः तंदुलवेचारिक का उल्लेख नंदीसूत्र एवं पाक्षिक सूत्र में भी है। नंदी सूत्र के कर्ता देववाचक माने जाते हैं। नंदीसूत्र और उसके कर्ता देव वाचक के समय के संदर्भ में मुनि श्री पुण्यविजयजी एवं पं. दलसुख भाई मालवणिया ने विशेष चर्चा की है। नंदी चूर्णि में देववाचक को दूष्यगणीका शिष्य कहा गया है। कुछ विद्वानों ने नन्दीसूत्र के कर्ता देववाचक और आगमों को पुस्तकारूढ़ करने वाले देवर्द्धिगणी क्षमाश्रमण को एक ही मानने की भ्रांति की है। इस भ्रांति के शिकार मुनि श्री कल्याण विजयजी भी हुए हैं, किन्तु उल्लेखों के आधार पर जहाँ देवर्द्धि के गुरु आर्य शांडिल्य हैं, वही देववाचक के गुरु दूष्यगणी हैं। अतः यह सुनिश्चित है कि देववाचक और देवर्द्धि एक ही व्यक्ति नहीं है। देववाचक ने नन्दीसूत्र स्थविरावली में स्पष्ट रूपसे दूष्यगणी का उल्लेख किया है।
पं. दलसुखभाई मालवणिया ने देववाचक का काल वीर निर्वाण संवत् 1020 अथवा विक्रम संवत् 550 माना है, किन्तु यह अंतिम अवधि ही मानी जाती है। देववाचक उसके पूर्व ही हुए होंगे।आवश्यक नियुक्ति में नंदीऔर अनुयोगद्वार सूत्रों का उल्लेख है, और आवश्यक नियुक्ति को द्वितीय भद्रबाहु की रचना भी माना जाय तो उसका काल विक्रम की पाँचवीं शताब्दी निश्चित है। इस संदर्भ में विशेष जानने के लिए हम मुनिश्री पुण्य विजयजी एवं पं. दलसुख भाई मालवलिया के नंदीसूत्र की भूमिका में देववाचक की समय संबंधी चर्चा को देखने का निर्देश करेंगे। चूँकि नंदी