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________________ आदि ऐसे प्रकीर्णक हैं, जो उत्तराध्ययन और दशवैकालिक जैसे प्राचीन स्तर के आगमों की अपेक्षाभी प्राचीन हैं।' तंदुलवैचारिक प्रकीर्णक- तंदुलवैचारिक-प्रकीर्णक एक गद्य-पद्य मिश्रित रचना है। इसका सर्वप्रथम उल्लेखनंदी एवं पाक्षिक सूत्र में प्राप्त होता है। दोनों ही ग्रंथों में आवश्यक- व्यतिरिक्त उत्कालिक श्रुत के अंतर्गत तंदुलवैचारिक काउल्लेख मिलता है।' पाक्षिक सूत्र वृत्ति में तंदुलवैचारिक का परिचय देते हुए कहा गया है कि"तंदुलवेयालियं ति तन्डु लानां वर्षशतायुष्क पुरुषप्रतिदिनभोग्यानां संख्याविचारेणोपलक्षितो ग्रन्थविशेषस्तन्डुलवैचारिक" अर्थात् सौ वर्ष की आयु वाला मनुष्य प्रतिदिन जितना चावल खाता है, उसकी जितनी संख्या होती है उसी के उपलक्षणरूप संख्या विचारको तंदुलवैचारिक कहते हैं।' अन्यग्रंथों में तंदुलवैचारिक का उल्लेख इस प्रकार पाया जाता है (1) आवश्यक चूर्णि के अनुसार कुछ ग्रंथों का अध्ययन एवं स्वाध्याय किसी निश्चित समय पर ही किया जात है और कुछ ग्रंथों कास्वाध्याय किसीभीसमय किया जासकता है। परंपरागत शब्दावलीसे पहले प्रकार के ग्रंथकालिक और दूसरे प्रकार के ग्रंथ उत्कालिक कहे जाते हैं। यहाँ भी तंदुलवैचारिक प्रकीर्णक का उल्लेख उत्कालिक सूत्र के रूप में हुआहै।' (2) दशवकालिक चूर्णि में जिनदासगणि महत्तर ने “कालदसा ‘बाला मंदा, किड्डा' जहां तंदुलवेयालिए" कहकर तंदुलवैचारिक का उल्लेख किया है।' (3) निशीथ चूर्णि में भी उत्कालिक सूत्रों के अंतर्गत तंदुल- वैचारिक का उल्लेख मिलता है। (क) उक्कालिअंअणेगविहं पण्णत्तं तंजहा- (1) दसवेआलिअं..... (14) तंदुलवेआलिअं ... एवमाइ। (नन्दी सूत्र - मधुकर मुनि - पृष्ठ 161-162)(ख) नमो तेसि खमासमणाणं.....अंगबाहिर उक्कालियं भगवंतं। तंजहा-दसवेआलिअं......तंदुलविआलिअं.......... महापच्चक्खाणं॥ (पाक्षिक-देवचन्द्र-लालचन्द्र जैन पुस्तकोद्धार, पृ.76) (क) पाक्षिकसूत्रवृत्ति-पत्र-77 (ख) अभिधान राजेन्द्र कोश, पृ. 2168 आवश्यकचूर्णि-ऋषभदेव केशरीमलश्वे. संस्था-रतलाम, 1929, भाग-2, पृष्ठ 2241 दशवैकालिकचूर्णि- रतलाम-1933, पृ.5। निशीथ सूत्रचूर्णि-भाग4, पृ. 2351
SR No.006192
Book TitlePrakrit Ke Prakirnak Sahitya Ki Bhumikaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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