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(6) संस्थारक, (7) गच्छाचार, (8) गणिविद्या, (9) देवेन्द्रस्तव और (10) मरण समाधि।
इन दस प्रकीर्णकों को श्वेताम्बर मूर्तिपूजक सम्प्रदाय आगमों की श्रेणी में मानते हैं। परंतु प्रकीर्णक नाम से अभिहित इन ग्रंथों का संग्रह किया जाये तो निम्न बाईस नाम प्राप्त होते हैं___(1) चतुःशरण (2) आतुरप्रत्याख्यान (3) भत्तपरिज्ञा (4) संस्थारक (5) तंदुलवैचारिक (6) चंद्रावेध्यक (7) देवेन्द्रस्तव (8) गणिविद्या (9) महाप्रत्याख्यान (10) वीरस्तव (11) ऋषिभाषित (12) अजीवकल्प (13) गच्छाचार (14) मरणसमाधि (15) तित्थोगालि (16) आराधना पताका (17) द्वीपसागरप्रज्ञप्ति (18) ज्योतिष्करण्डक (19) अंगविद्या (20) सिद्धप्राभृत (21) सारावली और (22) जीवविभक्ति।
इसके अतिरिक्त एक ही नाम के अनेक प्रकीर्णक भी उपलब्ध होते हैं । यथा'आउर पच्चक्खान' के नाम से तीन ग्रंथ उपलब्ध होते हैं।
इनमें से नन्दी और पाक्षिक के उत्कालिक सूत्रों के वर्ग में देवेन्द्रस्तव, तंदुलवैचारिक, चन्द्रावेध्यक, गणिविद्या, मरणविभक्ति, मरणसमाधि, महाप्रत्याख्यान, ये सात नाम पाये जाते हैं और कालिकसूत्रों के वर्ग में ऋषिभाषित
और द्वीपसागरप्रज्ञप्ति ये दो नाम पाये जाते हैं। इस प्रकार नंदी एवं पाक्षिक सूत्रों में नौ प्रकीर्णकों का उल्लेख मिलता है।'
यद्यपि प्रकीर्णकों की संख्या और नामों को लेकर परस्पर मतभेद देखा जाता है, किन्तु यह सुनिश्चित है कि प्रकीर्णकों के भिन्न-भिन्न सभी वर्गीकरणों में तंदुलवैचारिक को स्थान मिला है।
यद्यपि आगमों की श्रृंखला में प्रकीर्णकों का स्थान द्वितीयक हैं, किन्तु यदि हम भाषागत प्राचीनता और आध्यात्म-प्रधान विषय वस्तु की दृष्टि से विचार करें तो प्रकीर्णक, आगमों की अपेक्षाभी महत्वपूर्ण प्रतीत होते हैं। प्रकीर्णकों में ऋषिभाषित
1. पइण्णयसुत्ताई-मुनिपुण्यविजयजी- प्रस्तावनापृष्ठ 19। 2. नंदीसूत्र- मुनि मधुकर पृष्ठ 80-81। 3. ऋषिभाषित की प्राचीनताआदिके संबंध में देखें
डॉ.सागरमल जैन-ऋषिभाषित : एक अध्ययन (प्राकृत भारती संस्थान, जयपुर)।