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________________ 56 बौद्ध धर्म में देवों की अवधारणा बौद्ध धर्म में प्राणियों को नारक, तिर्यंञ्च, प्रेत, मनुष्य और देवता इन पाँच विभागों में वर्गीकृत किया गया है । तुलनात्मक दृष्टि से विचार करने पर हम यह पाते हैं कि जहाँ जैन परंपरा में प्रेत, असुर आदि को देव निकाय में वर्गीकृत किया गया है वहाँ बौद्ध परंपरा उन्हें स्वतंत्र निकाय के रूप में प्रस्तुत करती है । यद्यपि उनकी शक्ति आदि के विषय में देवों के समान ही उल्लेख प्राप्त होता है। इस प्रकार तुलनात्मक दृष्टि से देवनिकाय की चर्चा के प्रसंग में बहुत अधिक अंतर नहीं रह जाता है। बौद्ध परंपरा लोक को अपायभूमि, कामसुगतभूमि, रुपावचर भूमि और अरुपावचरभूमि ऐसे चार भागों में वर्गीकृत करती है। जैन परंपरा के तुलनात्मक दृष्टि से विचार करने पर, जो जैनों का अधोलोक है वह बौद्धों की कामावचर अपाय भूमि है, जो जैनों का तिर्यक् या मध्यलोक है वही बौद्धों की कामसुगति भूमि है, जैनों जिसे ऊर्ध्व लोक कहा है वह बौद्धों की रूपावचर भूमि है और जैनों का जो सिद्ध लोक या लोकाग्र है वहीं बौद्धों के अनुसार अरुपावचर भूमि है। यद्यपि यहाँ एक महत्वपूर्ण अंतर यह है कि जहाँ बौद्ध परंपरा इस अरुपावचर भूमि को भी ऐवे देवों का निवास मानती है जो रूप रहित मात्र एक चेतना प्रवाह है, वहीं जैन परंपरा इसे . निर्वाण या मोक्ष प्राप्त आत्माओं का निवास स्थान मानती है। बौद्ध परंपरा में इसके संबंध कोई स्पष्ट अवधारणा नहीं है कि सिद्ध अस्तित्व रखता है या नहीं, अगर रखता है तो कहाँ? यहाँ हम इस समस्त विवेचन में विस्तार से चर्चा नहीं करके देव - निकाय के संबंध में ही तुलनात्मक दृष्टि से विचार करेंगे। • जिस प्रकार जैन मान्यतानुसार देव - निकाय के प्राणी अधो, ऊर्ध्व और मध्य तीनों लोकों में निवास करते हैं, उसी प्रकार बौद्ध परंपरा में भी यदि हम प्रेतों को देव- निकाय का अंग मान तो यहां भी इस वर्ग का निवास कामावचर अपाय भूमि (अधोलोक) कामावचरसुगत भूमि (मध्य लोक), रूपावचर भूमि (ऊर्ध्वलोक) और अरुपावचर भूमि (सिद्ध लोक) में पाया जाता है। यहाँ यह स्मरण रखना चाहिए कि अरुपावचर भूमि में जिन देवों की कल्पना की गई है वे वस्तुतः जैनों के सिद्धों के अनुरूप अरुपी और शुद्ध चेतना मात्र है, अंतर केवल यह है कि बौद्धों के अनुसार ये देव बिना मनुष्य - लोक के जन्म लिये आयु पूर्ण होने पर निर्वाण प्राप्त कर लेते हैं, जबकि जैनों के अनुसार सिद्ध आत्माएँ निर्वाण प्राप्त ही हैं । जैनों ने जिसे व्यंतरदेव कहा है बौद्ध परंपरा में उन्हें प्रेत कहा गया है। जैनों के अनुसार ये असुरनिकाय और व्यंतरदेव अधोलोक में निवास करते हैं उसी प्रकार बौद्धों के अनुसार भी प्रेत अधोलोक में ही निवास करते हैं । जैनों ने जहां इस निकाय के विविध इन्द्रों की कल्पना की है वहां बौद्ध परंपरा में प्रेतों का राजा यम माना गया है जिसका निवास स्थान जम्बूद्वीप से पाँच सौ योजन नीचे माना गया है। "
SR No.006192
Book TitlePrakrit Ke Prakirnak Sahitya Ki Bhumikaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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