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________________ संतारक (1) (2) (3) (4) (5) वेरुलियो व्व मणोणं, गोसीसं - चंदणं व गंधाणं । जह व रयणेसु वइरं, तह संथारों सुविहियाणं ॥ (संस्तारक प्रकीर्णक, गाथा 4 ) देवा वि देवलोए भुंजंता बहुविहाई भोगाई | संथारं चिंतंता आसण-सयणाई मुंचति ॥ (संस्तारक प्रकीर्णक, गाथा 27 ) मा होह वासगणया, न तत्थ वासाणि परिगणिज्जंति। बहवे गच्छं वुत्था जम्मण-मरणं च ते खुत्ता ॥ (संस्तारक प्रकीर्णक, गाथा 51 ) न वि कारणं तणमओ संथारो न वियफासुया भूमी । अप्पा खलु संथारो हवइ विसुद्धे चरित्तम्मि ॥ (संस्तारक प्रकीर्णक, गाथा 53 ) आसीय पोयणपुरे अज्जा नामेण पुप्फचूल त्ति । तीसे धम्मायरिओ पविस्सुओ अन्नियापुत्तो ॥ सो गंगमुत्तरंत्तो सहसा उस्सारिओ य नावाए । पडिवन्न उत्तमट्ठे तेण वि आराहियं मरणं ॥ ( संस्तारक प्रकीर्णक, गाथा 56, 57 ) 318
SR No.006192
Book TitlePrakrit Ke Prakirnak Sahitya Ki Bhumikaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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