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__ (1)
__ वरं रदणेसु जहा गोसीसं चंदणं व गन्धेसु। वेरुलियं व माणीणं तह जझाणं होइ खवयस्स॥
(भगवती आराधना, गाथा 1890)
(2)
देवा वि देवलोए, निच्चं दिव्वोहिणा वियाणित्ता। आयरियाण सरंता आसण-सयणाणि मुच्चंति॥
(चन्द्रकवेध्यक प्रकीर्णक, गाथा 33)
___ (3)
मा होह वासगण्णा ण तत्थ वासाणि परिगणिज्जति। बहवो तिरत्तवुत्था सिद्धा धीरा विरग्गपरा समणा॥ (मूलाचार, गाथा 967)
(4) (i) न वि कारणं तणमओ संथारों, न वि य फासुया भूमी। अप्पा खलु संथारो होइ विसुद्ध मरंतस्स॥
(मरणविभक्ति प्रकीर्णक, गाथा 287) न वि कारणं तणमओ संथारों, न वि य फासुया भूमी। अप्पा खलु संथारो होइ विसुद्धो मणो जस्स॥
__ (मरणविभक्ति प्रकीर्णक, गाथा 96) (5) (i) णावाए णिव्वुगए गंगामज्झे अमुज्झमाणदी। आराधणं पवण्णो कालगओ एणियापुत्तो॥
(भगवती आराधना, गाथा 1538) (5) (ii) एणिका नाम विख्याता चार्वी सर्वकनीयसी...
...ग्रामादिकं कदाचिच्च विहरन् गतियोगतः उत्तरीतु समारूढ़ो नावं गङ्गानदीमसौ॥ गङ्गानदीजलान्तेऽसौ नौनिर्मग्ना निमूलतः।
समाधिमरणं प्राप्य निर्वाणमगमत् सकः (एणिकापुत्र कथानक; बृहत्कथाकोश, कथा 130, श्लोक 4-9)