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________________ 308 आचाराङ्गाकार भक्त प्रत्याख्यान, इंगिनीमरण और प्रायोपगमन ऐसे तीन प्रकार के समाधिमरणों का उल्लेख करता है। इसमें भक्त प्रत्याख्यान में मात्र आहारादि का त्याग किया जाता है, किन्तु शारीरिक हलन-चलन और गमनागमन आदि की कोई मर्यादा निश्चित नहीं की जाती है इंगिनीमरण में आहार त्याग के साथ ही शारीरिक हलन-चलन और गमनागमन का एक क्षेत्र निश्चित कर लिया जाता है और उसके बाहर गमनागमन का त्याग कर दिया जाता है। प्रायोपगमन या पादोपगमन में आहार आदि के त्याग के साथ-साथ शारीरिक क्रियाओं को सीमित करते हुए मृत्युपर्यन्त निश्चल रूप से लकड़ी के तख्त समान स्थिर पड़े रहना पड़ता है। वस्तुतः ये तीनों संथारे की क्रमिक अवस्थाएँ हैं। आचाराङ्गसूत्र के पश्चात् प्राचीन स्तर के अर्धमागधी आगम उत्तराध्ययनसूत्र में भी समाधिमरण का विवरण उपलब्ध होता है। उसके पाँचवें अध्याय में सर्वप्रथम मृत्यु के दो रूपों की चर्चा है- (1) अकाममरण और (2) सकाममरण। उसमें यह बताया गया है कि अकाममरण बार-बार होता है जबकि सकाममरण एक ही बार होता है। उत्तराध्ययनसूत्र के 36वें अध्याय में समाधिमरणयासंलेखना के काल और उसकी प्रक्रिया के संबंध में विवेचन हुआ है।" ___आचारांङ्गसूत्र व उत्तराध्ययन सूत्र के पश्चात् अर्धमागधी आगमों में स्थानांङ्गसूत्र और समवायाङ्गसूत्र में समाधिमरण के कुछ संकेत हैं । स्थाराङ्गसूत्र में भगवान महावीर द्वारा अनुमोदित और अननुमोदित मरणों का उल्लेख दो-दो के वर्गों में विभाजित करके किया गया है। समवायाङ्गसूत्र में मरण के निम्न सत्रह प्रकारों का उल्लेख हुआ है " - (1) आवीचिमरण, (2) अवधिमरण, (3) आत्यन्तिकमरण, (4) वलन्मरण, (5) वशार्तमरण, (6) अन्तःशल्यमरण, (7)तद्भवमरण, (8) ............. 40. उत्तराध्ययन सूत्रः सम्पा. मुनिमधुकर, प्रका. आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर, अध्ययन 5 गाथा 2 41. वही, अध्ययन 36 गाथा 251-255 42. स्थानाङ्गसूत्रसम्पा. मुनि मधुकर, प्रका.आगमप्रकाशन समिति, ब्यावर, सूत्र 2141411-416 43. समवायाङ्गसूत्रः सम्पा. मुनि मधुकर, प्रका. आगम प्रकाशन समिति ब्यावर, समवाय 17 सूत्र 121
SR No.006192
Book TitlePrakrit Ke Prakirnak Sahitya Ki Bhumikaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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