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________________ 307 वस्तुतः स्वेच्छामरण के सैद्धान्तिक मूल्य को अस्वीकार नहीं किया जा सकता है। मृत्युवरण तो मृत्यु की वह कला है, जिसमें न केवल जीवन ही सार्थक होता है वरन् मरण भी सार्थक हो जाता है। आदरणीय काका कालेलकर ने खलील जिब्रान का यह वचन उद्धृत किया है कि “एक आदमी ने आत्मरक्षा हेतु खुदकुशी की, आत्महत्या की, यह वचन सुनने में विचित्र सा लगता है ।' "37 आत्महत्या से आत्मरक्षा का क्या संबंध हो सकता है? वस्तुतः यहाँ आत्मरक्षा का अर्थ आध्यात्मिक एवं नैतिक मूल्यों का संरक्षण है और आत्महत्या का मतलब शरीर का विसर्जन । जब नैतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों के संरक्षण के लिए शारीरिक मूल्यों का विसर्जन आवश्यक हो तो उस स्थिति में देह विसर्जन या स्वेच्छापूर्वक मृत्युवरण ही उचित है । आध्यात्मिक मूल्यों की रक्षा प्राणरक्षा से श्रेष्ठ है । 38 जैन साधना में समाधिमरण की साधना अत्यंत प्राचीन काल से प्रचलित रही है। प्राचीनतम आगम आचाराङ्ग सूत्र में समाधिमरण का उल्लेख सर्वप्रथम उसके ‘विमोक्ष' नामक अष्टम अध्याय में हुआ है। इसमें वस्त्र एवं आहार के विसर्जन की प्रक्रिया को समझाते हुए अंत में देह - विसर्जन की साधना का उल्लेख हुआ है । आचाराङ्गसूत्र समाधिमरण किन परिस्थितियों में लिया जा सकता है, इसकी संक्षिप्त किन्तु महत्वपूर्ण विवेचना प्रस्तुत करता है। आचाराङ्गसूत्र में समाधिमरण के तीन रूपों का उल्लेख हुआ है- ( 1 ) भक्त प्रत्याख्यान, (2) इंगिनमरण और (3) प्रयोपगमन । इसमें समाधिमरण के लिये दो बातें आवश्यक मानी गई है - ( 1 ) कषायों का कृशीकरण और (2) शरीर का कृशीकरण ।" इसमें भी मुख्य उद्देश्य तो कषायों का कृशीकरण करना है। संथारा ग्रहण करने का निश्चय कर लेने के पश्चात् भिक्षु किस प्रकार समाधिमरण ग्रहण करे, इसका उल्लेख करते हुए आचाराङ्गाकार कहता है कि ऐसा भिक्षु ग्राम, नगर, कर्वट, आश्रम आदि में जाकर घास की याचना करे और उसे प्राप्त कर गाँव के बाहर एकान्त में जाकर जीव-जन्तु, बीज, हरियाली आदि से रहित स्थान को देखकर घास की शय्या तैयार करे और उस पर स्थित होकर इल्वरिक अनशन अथवा प्रायोपगमन स्वीकार करे । 37. परमसखा मृत्यु, पृ. 43 38. आचाराङ्गसूत्र, 8161224-253 39. वही, 8161224
SR No.006192
Book TitlePrakrit Ke Prakirnak Sahitya Ki Bhumikaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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