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बालमरण, (9) पण्डितमरण, ( 10 ) छद्मस्थमरण, ( 12 ) केवलिमरण, (13) वैखानसमर्ण, (14) गृद्धपृष्ठमरण, (15) भक्त प्रत्याख्यानमरण ( 16 ) इंगिनीमरण और (17) पादोपगमनमरण । ज्ञातव्य है कि नाम एवं क्रम के कुछ अंतरों को छोड़कर मरण के इन सत्रह भेदों की चर्चा यापनीय परंपरा द्वारा मान्य ग्रंथ भगवंतों आराधना में भी मिलती है ।" इसमें बालमरण, बालपण्डितमरण, पंडितमरण, भक्तप्रत्याख्यानमरण, इंगिनीमरण, प्रायोपगमनमरण आदि की चर्चा है। इसी प्रकार पाँचवें अंङ्ग आगम भगवतीसूत्र में अम्बड सन्यासी एवं उसके शिष्यों द्वारा गंगा की बालू पर अदत्त जल का सेवन नहीं करते हुए समाधिमरण पूर्वक देह त्यागने का उल्लेख पाया जाता है। सातवें अङ्ग आगम उपासकदशांङ्गसूत्र में श्रावकों के द्वारा तथा आठवें अङ्ग आगम अन्तकृतदशांग एवं नवें अङ्ग आगम अनुत्तरौपपातिकसूत्र में भी अनेक श्रमणश्रमणियों द्वारा अंगीकृत समाधिमरण के उल्लेख मिलते हैं।
उपाङ्ग साहित्य में मात्र औपपातिकसूत्र और राजप्रश्नीयसूत्र में समाधिमरण ग्रहण करने वाले कुछ साधकों के उल्लेख हैं, किन्तु इनमें समाधिमरण की अवधारणा के संबंध में कोई विवेचन उपलब्ध नहीं है ।
अर्धमागधी आगम साहित्य में अङ्ग एवं उपाङ्ग ग्रंथों में समाधिमरण की चर्चा अवश्य हुई है किन्तु इनमें से कोई भी ग्रंथ ऐसा नहीं है जो मात्र समाधिमरण की ही चर्चा करता हो। समाधिमरण की चर्चा करने वाले जो स्वतंत्र ग्रंथ उपलब्ध होते हैं, उन्हें अर्धमागधी आगम साहित्य में प्रकीर्णक वर्ग के अंतर्गत रखा गया है। प्रकीर्णकों में आतुरप्रत्याख्यान, महाप्रत्याख्यान, संस्तारक, भक्तपरिज्ञा, मरणविभक्ति, आराधनापताका एवं आराधनासार आदि प्रमुख है । इस प्रकार जैन साहित्य में 'समाधिमरण' पर जितने अधिक स्वतंत्र ग्रंथों की रचना हुई है उतने ग्रंथ साधना के अन्य किसी पक्ष पर नहीं लिखे गये हैं । अचेल परंपरा में भी भगवती आराधना एवं T आराधनासार जैसे समाधिमरण से संबंधित स्वतंत्र ग्रंथ लिखे गये हैं।
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भगवती आराधना : सम्पा. कैलाशचन्द्र सिद्धांत शास्त्री, प्रका. जैन संस्कृति संरक्षक संघ, शोलापुर, वर्ष 1978 गाथा 25