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श्रमण एक प्रकीर्णक की रचना करता था। समवायांगसूत्र में “चोरासीइं पइण्णग सहस्साई' कहकर ऋषभदेव के चौरासी हजार प्रकीर्णकों की ओर संकेत किया गया है।आज प्रकीर्णकों की संख्या निश्चित नहीं है, किन्तु वर्तमान में 45 आगामों में दस प्रकीर्णकमाने जाते हैं। ये दस प्रकीर्णक निम्नलिखित हैं
___ (1) चतुःशरण, (2) आतुरप्रत्याख्यान, (3) महाप्रत्याख्यान, (4) भक्तपरिज्ञा, (5) तन्दुलवैचारिक, (6) संस्तारक, (7) गच्छाचार, (8) गणिविद्या, (9) देवेन्द्रस्तव और (10) मरणसमाधि ।
___ इन दस प्रकीर्णकों के नामों में भी भिन्नता देखी जा सकती है। कुछ ग्रंथों में गच्छाचार और मरणसमाधि के स्थान पर चन्द्रवेध्यक और वीरस्तव को गिना गया है। कहीं भक्तपरिज्ञा को नहीं गिनकर चन्द्रवेध्यक को गिना गया हैं। इसके अतिरिक्त एक ही नाम के अनेक प्रकीर्णक भी उपलब्ध होते हैं यथा - “आउरपच्चक्खाण (आतुर प्रत्याख्यान) के नाम से तीन ग्रंथ उपलब्ध होते हैं।
दस प्रकीर्णकों को श्वेताम्बर मूर्तिपूजक सम्प्रदाय आगामों की श्रेणी में मानता है। मुनि श्री पुण्यविजयजी के अनुसार प्रकीर्णक नाम से अभिहित इन ग्रंथों का संग्रह किया जाए तो निम्न बाईस नाम प्राप्त होते हैं___(1) चतुःशरण, (2) आतुरप्रत्याख्यान, (3) भक्तपरिज्ञा, (4) संस्तारक, (5) तंदुलवैचारिक, (6) चन्द्रवेध्यक, (7) देवेन्द्रस्तव, (8) गणिविद्या, (9) महाप्रत्याख्यान, (10) वीरस्तव, (11) ऋषिभाषित, (12) अजीवकल्प, (13) गच्छाचार, (14) मरणसमाधि, (15) तीर्थोद्गालिक, (16) आराधनापताका (17) द्वीपसागरप्रज्ञप्ति, (18) ज्योतिषकरण्डक, (19) अंगविद्या,
3. . समवायांगसूत्र-सम्पा. मुनिमधुकर, प्रका. आगम प्रकाशन समिति,
ब्यावर; प्रथम संस्करण 1982, 84वाँसमवाय, पृष्ठ 143 (क) प्राकृत भाषाऔर साहित्यकाआलोचनात्मकइतिहास,डॉ.नेमिचन्द्रशास्त्री, पृष्ठ197 (ख) जैन आगम साहित्य मनन और मीमांसा, देवेन्द्रमुनि शास्त्री, पृष्ठ 388 (ग) आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन, मुनि नगराज, पृष्ठ 486 पइण्णयसुत्ताई-सम्पा. मुनिपुण्यविजय,प्रका.महावीरजैन विद्यालय, बम्बई भाग1,प्रथम
संस्करण, 1984, प्रस्तावना पृष्ठ 20 __ अभिधान राजेन्द्र कोशभाग 2, पृष्ठ 41