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________________ 277 इसी संदर्भ में आगे चलकर यह माना जाने लगा है कि तीर्थंकर की भक्ति से उनके शासन में यक्ष-यक्षी (शासन-देवता) प्रसन्न होकर भक्त का कल्याण करते हैं तो लोगों में शासन देवता के रूप में यक्ष एवं यक्षी की भक्ति की अवधारणा का विकास होने लेगा और उनकी भी स्तुति की जाने लगी। “उवमग्गहरस्तोत्र" प्राकृत का सबसे पहला तीर्थंकर के साथ-साथ उनके शासन के यक्ष की स्तुति करने वालास्तोत्र है। इस स्तोत्र के कर्ता वाराहमिहिर के भाई द्वितीय भद्रबाहु (ईसा की छठी शती) को माना जाता है। ___इसके पश्चात् प्राकृत संस्कृत और आगे चलकर मरु-गुर्जर में अनेक स्तोत्र बने, जिनमें ऐहिक सुख-सम्पदा प्रदान करने की भी कामना की गई। यह सब चर्चा हमने सिर्फ स्तुतिपरक साहित्य के विकासक्रम पर दृष्टिपात करने के उद्देश्य से की है कि स्तुतियों का किस क्रम से किस रूप में विकास हुआ। वीरस्तव भी ऐसा ही एक स्तुतिपरक ग्रंथ है।
SR No.006192
Book TitlePrakrit Ke Prakirnak Sahitya Ki Bhumikaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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