SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 284
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ R ग्रंथ में प्रयुक्त हस्तलिखित प्रतियों का परिचय मुनि श्री पुण्यविजयजी ने वीरस्तवन ग्रंथ के पाठ निर्धारण में निम्न हस्तलिखित प्रतियों का प्रयोग किया है' (1) सं. - श्री हेमचन्द्राचार्य जैन ज्ञानमंदिर पाटन की प्रति । यह प्रति संघवीपाड़ा जैन ज्ञान भंडार की है, जो ताड़पत्र पर लिखी हुई है। 278 (2) हं. - श्री आत्माराम ज्ञान जैन मंदिर, बड़ौदा की प्रति । यह प्रति मुनि श्री हंसराजजी म.सा. के हस्तलिखित ग्रन्थसंग्रह की है । ( 3 ) प्र. - श्री पूज्यपाद प्रवर्तक श्री कांतिविजयजी म.सा. के संग्रह की प्रति की कोई नकल है। (4) पु. 1 श्री लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर, अहमदाबाद में सुरक्षित, यह प्रति मुनि श्री पुण्यविजयजी म.सा. के संग्रह की है। - हमने उक्त क्रमांक 1 से 4 तक की इन पाण्डुलिपियों के पाठ भेद मुनिपुण्यविजयजी द्वारा 'सम्पादित पइण्णय सुत्ताई' नामक ग्रंथ से लिये हैं । इन पाण्डुलिपियों की विशेष जानकारी के लिए हम पाठकों से 'पइण्णय सुत्ताई' ग्रंथ की प्रस्तावना के पृष्ठ 23-30 देखने की अनुशंसा करते हैं । ग्रंथकर्ता एवं रचनाकाल - प्रकीर्णक ग्रंथों के रचयिताओं के संदर्भ में मात्र देवेन्द्रस्तव प्रकीर्णक के कर्ता ऋषिपालित का उल्लेख मिलता है, इसके अतिरिक्त अन्य किसी भी प्रकीर्णक के कर्ता का स्पष्ट उल्लेख प्राप्त नहीं होता। हालांकि पइण्णय सुत्ताई भाग 1 की प्रस्तावना' में मुनिपुणयविजयजी ने, प्राकृत साहित्य के इतिहास में जगदीश चन्द्र जी जैन ने ', जैन 6. पइण्णय सुत्ताई भाग 1 - प्रस्तावना 17-18 । प्राकृत साहित्य का इतिहास - पृ. 128 7.
SR No.006192
Book TitlePrakrit Ke Prakirnak Sahitya Ki Bhumikaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy