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रहने के कारण अधिकांश प्रकीर्णक जनसाधारण को अनुपलब्ध ही रहे हैं और कुछ प्रकीर्णकों को छोड़कर अन्य का प्रकाशन भी नहीं हुआ है। प्रकीर्णक ग्रंथों की विषयवस्तु विशेष महत्वपूर्ण है अतः विगत कुछ वर्षों से प्राकृत भाषा में निबद्ध इन ग्रंथों का संस्कृत, गुजराती, हिन्दी आदि विविधभाषाओं में अनुवाद सहित प्रकाशन हुआ है।गच्छाचार प्रकीर्णक के उपलब्धप्रकाशित संस्करणों का विवरण इस प्रकार है
__ (1) गच्छाचार पइण्णयं - आगमोदय समिति, बड़ौदा से "प्रकीर्णकदशकम्” नामक प्रकाशित इस संस्करण में गच्छाचार सहित दस प्रकीर्णकों की प्राकृत भाषा में मूल गाथाएं एवं उनकी संस्कृत छाया दी गई है। यह संस्करण वर्ष 1928 में प्रकाशित हुआ है।
(2) श्री गच्छाचार पयन्ना - श्री गच्छाचार पयन्ना नाम से मुनिश्री विजय राजेन्द्रसूरिजी द्वारा अनुवादित दो संस्करण प्रकाशित हुए है। प्रथम संस्करण श्री अमीरचन्दजी ताराजी दाणी, धानसा (राज.) से वर्ष 1945 में प्रकाशित हुआ है इसका वर्ष 1991 में पुनः प्रकाशन हुआ है । धानसा से प्रकाशित इस संस्करण में प्राकृत गाथाओं का गुजराती भाषा में अनुवाद भी दिया गया है।
मुनिश्री विजय राजेन्द्रसूरिजी द्वारा अनुवादित द्वितीय संस्करण श्री भूपेन्द्रसूरि जैन साहित्य समिति, आहोर (मारवाड़) से वर्ष 1946 में प्रकाशित हुआ है। उक्त संस्करण में प्राकृत गाथाओं की संस्कृत छायाएवं गुजराती अनुवाद दिया गया है।
(3) गच्छाचार प्रकीर्णकम्- गच्छाचार प्रकीर्णक का यह संस्करण प्राकृत गाथाओं एवं संस्कृत वृत्ति सहित दयाविमल ग्रंथमाला, अहमदाबाद से प्रकाशित हुआ है।
(4) गच्छाचार प्रकीर्णकम् - आत्मारामजी म.सा. के शिष्य खजानचंदजी म.सा. के प्रशिष्य मुनि श्री त्रिलोकचंदजी द्वारा लिखित यह संस्करण रामजीदास किशोरचंद जैन, मनासा मण्डी से प्रकाशित हुआ है। ग्रंथ में प्रकाशन का समय नहीं दिया गया है इसलिए यह बताना संभव नहीं है कि यह संस्करण कब प्रकाशित हुआ है। उक्त संस्कृत में प्राकृत भाषा में मूल गाथाएँ उसकी परिष्कृत संस्कृत छाया एवं साथसाथ हिन्दीभाषा में भावार्थभी दिया गया है।