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________________ 259 (5) गच्छाचार प्रकीर्णकम् - मुनि श्री विजयविमलगणि द्वारा लिखित यह संस्करण वर्ष 1975 में श्री हर्ष पुष्पामृत जैन ग्रंथमाला, शांतिपुरी (सौराष्ट) से प्रकाशित हुआ है। यह संस्करणभी संस्कृत छाया के साथ प्रकाशित हुआ है। (6) श्रीमद् गच्छाचार प्रकीर्णकम् - आचार्य आनंद विमल द्वारा लिखित यह संस्करण आगमोदय समति, बड़ौदा से वर्ष 1923 में प्रकाशित हुआ है। उक्त संस्करण में प्राकृत गाथाओं के साथ वानर्षि कृत संस्कृत वृत्तिभी दी गई है। गच्छाचार के कर्ता प्रकीर्णक ग्रंथों के रचयिताओं के संदर्भ में मात्र देवेन्द्रस्तव को छोड़कर अन्य किसी प्रकीर्णक के रचयिता का स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता। यद्यपि चतुःशरण, आतुरप्रत्याख्यान और भक्तिपरिज्ञा आदि कुछ प्रकीर्णकों के रचयिता के रूप में वीरभद्र का नामोल्लेख उपलब्ध होता है और जैन परंपरा में वीरभद्र को महावीर के साक्षात् शिष्य के रूप में उल्लिखित किया जाता है, किन्तु प्रकीर्णक ग्रंथों की विषयवस्तु का अध्ययन करने से यह फलित होता है कि वे भगवान् महावीर के समकालीन नहीं है। एक अन्य वीरभद्र का उल्लेख वि.सं. वि.सं. 1008 का मिलता हैं। संभवतः गच्छाचार की रचना इन्हीं वीरभद्र के द्वारा हुई हो। प्रस्तुत प्रकीर्णक में आरंभसे अंत तक किसी भी गाथा में ग्रंथकर्ता ने अपना नामोल्लेख नहीं किया है। ग्रंथ में ग्रंथकर्ता के नामोल्लेख के अभाव का वास्तविक कारण क्या रहा है ? इस संदर्भ में निश्चय पूर्वक भले ही कुछ नहीं कहा जा सकता हो, किन्तु एक तो ग्रंथकार ने इस ग्रंथ के प्रारंभ में ही यह कहकर कि श्रुत समुद्र में से इस गच्छाचार को समुद्धत किया गया है, अपने को इस संकलित ग्रंथ के कर्ता के रूप में उल्लिखित करना उचित नहीं माना हो, दूसरे ग्रंथ की गाथा 135 में भी ग्रंथकार ने यह स्पष्ट स्वीकार किया है कि महानिशीथ, कल्प और व्यवहार सूत्र से इस ग्रंथ की रचना की गई है। हमारी दृष्टि से इस अज्ञात ग्रंथकर्ता के मन में यह भावना अवश्य रही होगी कि प्रस्तुत ग्रंथ की विषयवस्तु तो मुनि, पूर्व आचार्यों अथवा उनके ग्रंथों से प्राप्त हुई है, इस स्थिति में मैं इस ग्रंथ का कर्ता कैसे हो सकता हूँ? वस्तुतः प्राचीन स्तर के आगम ग्रंथों के समान ही इस ग्रंथ के कर्ता ने भी अपना नामोल्लेख नहीं किया है। इससे जहाँ एक ओर उसकी 1. 2. The Canonical Literature of the Jainas, pp. 51-52 Ibid..p.52
SR No.006192
Book TitlePrakrit Ke Prakirnak Sahitya Ki Bhumikaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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